________________
सूत्रस्थान-अ० २७.
(३६९) . कालीमिर्च-अधिक गर्म नहीं है। अवृष्य, हलकी एवम् रुचिकारक है तथा - छेदी होनेसे और शोषण होनेसे दीप्तिकारक एवम् वातकफनाशक है ।। २९० ॥
हंगके गुण । वातश्लेमविवन्धनंकटुकंदीपनलघु।
हिंगुशूलप्रशमनं विद्यात् पाचनराचनम् ॥ २९१ ॥ हींग वात, कफ, विवंध इनको नष्ट करनेवाली, कटु, उष्ण, दीपन, लघु,शूल नाशक, पाचन और रुचिकारक है ॥ २९१ ॥
सेन्धानमश्के गुण । रोचनंदीपनंहृद्यचक्षुष्यविदाहिच।
त्रिदोषनेसमधुरसन्धर्वलवणोत्तमम् ॥ २९२ ॥ सेंधानमक रुचिकारक, दीपन, हृदयको प्रिय, नेत्रोंको हितकारी, अविदाही त्रिदोषनाशक, एवम् मधुर होताहै ।। २९२ ।।
संचलनमकके गुण। सौम्यादौष्ण्याल्लघुत्वाचसौगन्ध्याचाचप्रदम् ।
सौवञ्चलंविबन्धनंहृद्यमुद्वारशोधिच ॥२९३ ॥ ___ संचरनमक सूक्ष्म होनेसे तथा उष्ण होनेसे एवम् हलका और सुगंधित होनेसे रुचिकारक, विधनाशक हृद्य तया उद्गारको शुद्ध करता है ।। २९३ ।।
विडनमकके गुण । तैक्षण्यादौष्ण्याइयवायित्वाद्दीपनंशूलनाशनम् ।
ऊध्वञ्चायश्चवातानामानुलोम्यकरविडम् ॥ २१४ ॥ . विडनमक तीक्ष्ण होनेसे, उष्ण होनेसे एवम् व्यवायी होनेसे दीपन,शूलनाशक, ऊपर और नीचेके भागों में होनेवाली वायुको अनुलोमन करता है ।। २९४॥
उद्भिदनमकके गुण । सतिक्तकटुसक्षारतीक्ष्णमुलेदिचौद्भिदस् ॥
नकाललवणेगन्धःसौवर्चलगुणाश्चते ॥ २९५ ॥ उद्भिद नमक (खारी नमक )-किंचित् कडुआ, चरपरा, खाग, तीक्ष्ण तथा उक्छेदकारक है । कालानमक गन्धहीन होता है और सब गुण संचरनमकके समान होता है ॥ २९५ ॥