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गुरु।
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चरकसंहिता-भा०टी०।
कम्मके तैलके गुण। कुसुम्भतैलमुष्णञ्चविपाकेकटुकंगुरु ।
विदाहिचविशेषेणसर्वरोगप्रकोपनम् ॥ २८५॥ कुसुम्भके बीजोंका तेल-गर्म, विपाकमें कटु, भारी, विशेषकर विदाही एवम्:सर्व दोषोंको कुपित करनेवाला है ॥ २८५ ॥
फलोंके तैलके गुण । फलानांयानिचान्यानितलान्याहारसन्निधौ।,
युज्यन्तगुणकर्मन्यांतानिब्रूयाद्यथायथम् ॥ २८६ ॥ इसीप्रकार अनेक प्रकारके फलोंके तैलोंको आहारके संयोगमें गुणकर्मों करके उनके गुणोंको कथन करे ॥ २८६ ।।
मज्जावसाके गुण । मधुरोबृंहणोवृष्यावल्योमजातथावसा ।
यथासवन्तुशैत्योष्णेवसामज्ञोविनिर्दिशेत् ॥ २८७ ॥ मज्जा और चीं ये दोनों मधुर, पुष्टिकारक, वीर्यवर्द्धक, बलकारक होती हैं। शीतगुणविशिष्ट तेलोंको गर्मीमें तथा उष्णगुणविशिष्ट तेलोंको सीमें उपयोग करे ॥ २८७॥
सोंठके गुण । सस्नेहंदीपनंवृष्यमुष्णंवातकफापहम् ।
विपाकमधुरंहृद्यरोचनविश्वभेषजम् ॥ २८८ ॥ सोंठ-चिकनी, दीपन, वृष्य, उष्ण, वातकफनाशक, विपाकमें मधुर, हृद्य और। रुचिकारक है ।। २८८ ॥
पीपलके गुण । श्लेष्मलामधुराचागुर्वीस्निग्धाचपिप्पली।
साशुष्काकफवातघ्नीकटुकावृष्यसम्मता ॥ २८९॥ कची पीपल-कफकारक, मधुर,भारी एवम् स्निग्ध होतीहै । सूखी पीपल कफबात नाशक चरपरी एवं वीर्यवर्द्धक होतीहै ॥ २८९ ॥
मिरचके गुण। नात्यर्थमुष्णंमरिचमवृष्यंलघुरोचनम् । छेदित्वाच्छोषणत्वाञ्चदीपनंकफवातजित् ॥ २९॥