________________
( ३६७)
सूत्रस्थान-अ० २७.
तैलकी उत्कृष्टतामें दृष्टान्त । तैलप्रयोगादजरानिर्विकाराजितश्रमाः।
आसन्नातिबलाःसंख्येदैत्याधिपतयःपुरा ॥ २८०॥ किसी समयमें दैत्योंके राजा तैलके प्रयोगसे अजर निर्विकार, श्रमरहित, एवम् लडनेमें अत्यन्त बलवान् हुए थे। यदि मनुष्यभी विधिवत् तैलका उपयोग करे तो बलवान् तथा उपरोक्त गुणोंवाला होसकताहै परन्तु तैल मर्दन करनेसेही अधिक गुण करताहै ॥ २८ ॥
अरण्डतैल के गुण। ऐरण्डतैलंमधुरंगुरुश्लेष्माभिवर्द्धनम् ।
वातासृग्गुल्महृद्रोगजीर्णज्वरहरंपरम् ॥ २८१ ॥ एरंड तैल-मधुर, भारी, कफवर्धक तथा वात, रक्त, गुल्म, हृद्रोग, जीर्णज्वर इनको हरनेवाला है ॥ २८१ ॥
सरसों के तैलके गुण । कटूष्णसार्षपतैलंरक्तपित्तप्रदूषणम् ।
कफशुक्रानिलहरंकण्डूकोठविनाशनम् ॥ २८२ ॥ सरसोंका तैल-कटु,उष्ण,रक्तपिचको दूषित करनेवाला,कफ,शुक्र एवम् वायुको हरनेवाला तथा खुजली कोष्ठ आदि त्वचाके रोगोंको नष्ट करता है ॥२८२ ॥
पियालके तैलके गुण। पियालतैलंमधुरंगुरुश्लेष्माभिवर्द्धनम् ।
हितमिच्छन्तिनात्योष्ण्यासंयोगेवातपित्तयोः ॥ २८३॥ चिरौंजीका तेल-मीठा, भारी, कफवर्द्धक तथा अत्यन्त गर्म न होनेसे द्रव्यके संयोग द्वारा वातपित्तको नष्ट करताहै ॥ २८३ ॥
. अलसीके तैलके गुण । आतस्यमधुराम्लन्तुविपाकेकटु कंतथा।
उष्णवीयहितंवातेरक्तपित्तप्रकोपनम् ॥ २८४॥ .अलसीका तेल-मीठा, अम्ल, विपाकमें कटु, उष्णवीर्य, वातरोगामें हित एवम् रक्तपित्तको कुपित करनेवाला है ॥२८४ ॥