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________________ (.३७०) चरकसंहिता-भा० टी०॥ . समुद्रादिलवणके गुण । सामुद्रकंसमधुरंसतिक्तंकटुपांशुजम् । रोचनंलवणंसर्वपाकिस्रस्यनिलापहम् ॥२९६ ॥ सामुद्रनमक किञ्चित् मधुर होता है। पांशुलवण किंचित् तिक्त और कटु होता है । प्रायः सब प्रकारके लवण रुचिकारक, पाचन, दस्तावर, एवम् वातनाशक होते हैं । २९६ ॥ __जवाखारके गुण। हृत्पाण्डुग्रहणीदाषप्लीहानाहगलग्रहान् । कासंकफजमशेसियावशकोव्यपोहति ॥ २९७ ॥ जवाखार हृद्रोग, पांडुरोग, ग्रहणी, प्लीहा, अफरा, गलग्रह, कफकी खांसी और बवासीरको नष्ट करता है ॥ २९७ ॥ क्षारोंके गुण । । तीक्ष्णोष्णोलघुरूक्षश्चक्लदीपाकीविदारणः । दहनोदीपनश्छेत्तासर्वःक्षारोऽसिसन्निभः ॥२९८ ॥ प्रायः सब प्रकारके क्षार-तीक्ष्ण, गर्म,लघु, रूस, क्लेदी, पाचनकर्ता, विदा रण, दाहन, दीपन, छेदन और अग्निके समान होते हैं । २९८ ॥ जीरा और धनियाका:गुण । कारव्यःकुञ्जिकाजाजीकवरीधान्यतुम्बुरुः । रोचनंदीपनंवातकफदोर्गन्ध्यनाशनम् ॥ २९९ ॥ ५ कलौंजी, कालानीरा, अजायन, सफेदजीरा, मेथी नैपाली धनिया, तुंवरु, ये सब रुचिकारक, दीपन, वातकफनाशक एवम् दुर्गन्धनाशक होते हैं ॥ २९९ ॥ आहारयोगिनांभक्तिनिश्चयोनतुविद्यते । समातोद्वादशश्चायंवर्गआहारयोगिनाम् ॥ ३०० ॥ - इत्याहारयोगवर्गः। : आहारके उपयोगी पदार्थों में कहांपर कौन वस्तुएं कितनी डालिनी चाहिये इसका कोई यथार्थ नियम नहीं है । इस प्रकार आहारोपयोगी नामक द्वादशवर्ग -समाम हुआ ॥ ३०॥
SR No.009547
Book TitleCharaka Samhita
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamprasad Vaidya
PublisherKhemraj Shrikrushnadas Shreshthi Mumbai
Publication Year1923
Total Pages939
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Medicine
File Size48 MB
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