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सूत्रस्थान-अ० २७. . (३४९)
शीतरसिकका गुण । जरणीयोविबन्धनःस्वरवर्णावशोधनः॥
लेखनःशीतरसिकोहितःशोफोदरार्शसाम् ॥ १७९ ॥ शतिरसकनामक मद्य-भोजनको जीर्ण करनेवाला,विबंधनाशक,स्वर और वर्णको उत्तम बनानवाला, लेखन,एवम् उदररोग तथा अर्शरोगवालेको हितकारी है१७९॥
गौडके गुण । मृष्टोभिन्नशकतातोगौडस्तर्पणदीपनः।
पाण्डुरोगंव्रणहितादीपनीचाक्षिकीमता ॥ १८० ॥ गुडसे बना मद्य-स्वच्छ, मल और अधोवायुको निकालनेवाला, तृप्तिकारक और दीपन होताहै । बहेडेके संयोगसे बना मद्य पांडुरोग तथा व्रणविकारमें हितः कारी होताहै एवम् अग्निको दीपन करताहै ॥ १८० ।।
सुरासबके गुण । सुरासवस्तीत्रमदोवातनोवदनप्रियः।
छेदीमध्वासंवस्तीक्ष्णोमेरयोमधुरोगुरुः।। १८१॥ सुरासे दोबारसे खींचाहुआ मद्य-तीव्रमदको करनेवाला, वातनाशक, और मुखप्रिय होताहै । मध्वासव अर्थात् शहदसे बनाहुआ मद्य-छेदन और तीक्ष्ण होताहै। मैरेयनामक.मद्य मधुर और भारी होताहै ॥ १८१॥
धातक्यासबके गुण । धातक्यभिषुतोहृद्योरूक्षोरोचनदीपनः।
माध्वीकवन्नचात्युष्णोमृद्वीकेक्षुरसासंवः॥ १८२ ॥ धावेके फूलोंके संयोगसे बना मद्य हृदयको प्रिय, रूक्ष, रुचिकारक और दीपन होताहै ।मुनका और ईखके रससे बना आसव मध्वासबके समान गुणवाला होता है किन्तु अधिक गर्म नहीं होता ॥ १८२ ॥
मधुके गुण । रोचनंदीपनंहृद्यंबल्यंपित्ताविरोधिच । ,
विवन्धनंकफन्नश्चमधुलध्वल्पमारुतम् ॥ १८३॥ मधुनामकमय रुचिकारक, अग्निदीपक, हृदयको प्रिय, बलकारक, पित्तको उत्पन्न करता, विवंधनाशक, कफनाशक, हल्का एवंम् किंचित् वायुकारक होताहै ॥ १८३ ॥