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(३४८) चरकसंहिता-भा० टी०
मदिराके गुण । हिकाश्वासप्रतिश्यायकासव ग्रहारुचौ ।
वम्यानाहविबन्धेषुवातघ्नीमदिराहिता॥ १७४ ॥ मद्य-वातनाशक होनेसे हिक्का, श्वास, प्रतिश्याय, खांसी, मलग्रह (कब्जी), अरुचि, वमन, आनाह ( अफारा), विबंध इन रोगोंमें हितकारक होतीहै।१७४॥
जगलमयका गुण । शलप्रवाहिकाटोपकफवातार्शसाहितः।
जगलोयाहिरूक्षोष्णःशोफघ्नोभुक्तपाचनः ॥१७५॥ जगलनामक मद्य--शूल-प्रवाहिका, पेटका फूलना, कफ, वात और अर्शरोगमें हितकारक होतीहै तथा ग्राही, रूक्ष, उष्ण,शोथनाशक और भोजनको पचानेवाली है ॥ १७९॥
__ अरिष्टके गुण। शोफा ग्रहणीदोषपाण्डुरोगारुचिज्वरान् ।
हन्त्यारष्टःकफकृतान्रोगाोचनदीपनः ॥ १७६ ॥ अरिष्ट-- सूजन, अर्श, पांडुरोग, ग्रहणीरोग, अरुचि, ज्वर एवम् कष्टके रोगोंको नष्ट करताहै तथा रोचन, और दीपन है ॥ १७६ ॥
शर्करामद्यके गुण । मुखाप्रियःसुखमदः सुगन्धिर्बस्तिरोगनुत् ।
जरणीयःपरिणतोहृद्योवर्ण्यश्चशार्करः॥ १७७ ॥ खांडसे बना अरिष्ट--मुखप्रिय, सुखका देनेवाला, मदकारक, सुगंधित, वस्तिरोगनाशक,पाचनकर्ता यदि पुराना हो तो हृदयको प्रिय और वर्णकारक होताहै ॥ १७७ ॥.
पक्करसके गुण । रोचनोदीपनोहृद्यःशोषशोफार्शसांहितः ।
स्नेहश्लेष्मविकारघ्नोवय:पक्करसोमतः ॥ १७८॥ . . पक्करसनामक मद्य-रोचक, दीपन, हृद्य, शोषनाशक, सुजन तथा अर्शरोगमें हितकारी है एवम् स्नेहसे और कफसे उत्पन्न हुए रोगोंको नष्ट करताहै तथा वर्णकारक है ॥ १७८॥