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सूत्रस्थान-अ० २७, . जीवकशाक, नाडीशाक, पालक, रामदानेका शाक ( लालपत्तेवाला बडावाथु ), कलाचशाक, नालिकाशाक, स्मर्यु (कौंचकीफलीका शाक) काम, वृकधूमक, लक्ष्मणा, पंमार (पनवाड) कमलकी डण्डी, शहतूत, सलोनक, यवशाक, पेठा, बावची, श्वेत शालपर्णी, जीवन्ती, हंसपदी, पीलुपी इन सबके शाक.गुरु, रूक्ष, देरमें पचनेवाले,मीठे शीतवीर्य तथा मलवधक होतेहैं ॥ ९५-९९ ॥
शाकोंकी साधारण विधि।। स्विन्नंनिष्पीडितरसंस्नेहाढ्यंतत्प्रशस्यते । शणस्यकोविदारस्य कर्बुदारस्यशाल्मलेः ॥ १००॥ पुष्पंग्राहिप्रशस्तञ्चरक्तपित्तेविशेषतः॥१०१॥ सव सागोंको पहिले उबालकर निचोड देना चाहिये. फिर उसको घी आदिमें सिद्ध कर खाना उत्तम कहाहै । सणके फूल, दोनों प्रकारोंके कचनारोंके फूल, सेमलके फूल ये सब-संग्राही तथा रक्तपित्तमें विशेष हितकारी होतेहैं१००॥१०१॥
अन्य नानाविध शाकोंके गुण । न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षपद्मादिपल्लवाः कषायाःस्तम्भनाः शीताहिताःपित्तातिसारिणाम्॥ १०२ ॥ वायुंवत्सादनीहन्याकफंगण्डीरचित्रको।श्रेयसीबिल्वपर्णीचबिल्वपत्रन्तुवातनुत् । भाण्डीशतावरीशाकंबलाजीवन्तिजञ्चयत् ॥ १०३ ॥पर्वण्याः पर्वपुष्प्याश्चवातपित्तहरंस्मृतम्। लघुभिन्नशकृत्तिक्तंलागुलक्युरुवूकयोः॥ १०४ ॥ बड़, गूलर, पीपल, पिलखन और कमल आदिकोंके पत्र-कसैले, स्तम्भनकर्ता, शीतवीर्य तथा पित्तके अतिसारवालोंको हितकारक होतेहैं। गिलोयके पत्रोंका शाक वातनाशक होताहै। गण्डीर और चित्रकके पत्रोंका शाक कफनाशक होताहै। गजपीपल और बिल्वपर्णी तथा वेलके पत्र वातनाशक होतेहैं । भाण्डीशाक तथा शताचरीका शाक, बलाकाशाक, जीवन्तीका शाक, पर्वणीशाक, पपुष्प यह सब वात, पित्तनाशक होते हैं । लांगुलीके पत्र और एरंडके पत्र हल्के और मलवेधक होते हैं। (लांगुलीका कंद तक्षिण विष होता है) ॥ १०२॥ १०३ ॥ १०४ ॥
तिलवेतसशाकञ्चशाकंपञ्चांगुलस्यवा । वातलंकटुतिक्ताम्लमधोमार्गप्रवर्तकम् ॥ १०५ ॥ रूक्षामलमुष्णकौसुम्भकफनंपित्तवर्द्धनम् । त्रपुसैर्वारुकस्वादुगुरुविष्टम्भिशीतलम् ॥ १०६ ॥