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(३३६.) चरकसंहिता-भा० टी०। मुखप्रियश्चरूक्षञ्चमूत्रलंत्रपुसंस्वति । एवारुकञ्चसंपक्कंदाह- .. तृष्णाक्लमार्त्तिनुत् । वर्षोभेदीन्यलावूनिरूक्षशीतगुरूणि च॥ १०७॥ तिलशाक तथा बेतका शाक तथा क्षुद्र एरंडका शाक वातल,कटु, तिक्त,अम्ल और मलको निकालनेवाला है ॥ १०५ ॥ कुसुम्भेका शाक-रूक्ष, अम्ल, उष्ण, कफनाशक तथा पित्तवर्द्धक होताहै । खीरे और ककडीका शाक- मधुर, भारी, विष्टम्भकारक, शीतल, सुस्वादु और रूक्ष होताहै । इनमें खीरा बहुत मूत्रको लानेवाला और पकी हुई आर्या ककडी-दाह, तृषा और बलगमकी पीडाको शान्तः करती है । तुवेका शाक मलवेधक,रूक्ष और भारी होताहै ॥ १०६ ॥ १०७ ॥ चिभिटयारुकेतद्वद्वयॊभेदहितेतुत। कूष्माण्डमुक्तंसक्षारंमधुराम्लंतथालघु ॥ १०८ ॥ स्रष्टमूत्रपूरीषञ्चसर्वदोषनिबर्हणम् । केलूटश्चकदम्बञ्चनदीमाषकमैन्दुकम् ॥ विषदंगुरुशीतंचसमभिष्यन्दिचोच्यते ॥ १०९ ॥ चिरभिट (चचेंड) और त—जका शाक- मलको वेधन करनेवाला और हितकर्ता .. होताहै । कुंभडा (कोहडा और कद्दू) का शाक:मधुर, अम्ल, क्षार एवं हलका होताहै तथा मलमूत्रको निकालनेवाला और सर्वदोषोंको हरनेवाला होताहै । केलूट, कदम्ब, नदीमाष, ऐन्दुक ये सव--विशद, भारी, शीतल तथा अभिष्यन्दी हात. हैं॥ १०८ ॥ १०९॥
उत्पलानिकषायाणिपित्तरक्तहराणिच । तथातालप्रलम्बञ्च उरःक्षतरुजापहम् ॥११०॥ खजूरंतालशस्यश्चरक्तपित्तक्षयापहम् ॥ भरूटविसशालूकक्रौञ्चादनकशेरुकम् । शृङ्गाटकंकलोड्यञ्चगुरुविष्टम्भिशीतलम् ॥ १११ ॥ कुमुदोत्पलनालास्तु सपुष्पाःसफलाःस्मृताः। शीताःस्वादुकषायास्तुकफमारुतकोपनाः ॥ ११२॥
सब प्रकारके कमल- कसैले और रक्तपित्त नाशक होते हैं । तालजटा (ताडकी । कोमल जटा ) उरःक्षत विकारको शान्त करताह । खजूरकी कोंपल-रक्तपित्त और क्षयको नष्ट करती है ॥ ११०॥ कहारका कंद, भिस, शालूक, पद्मबीज, कसेरू, सिंघाडा; छोटा कमलकंद,ये सब भारी,विष्टंम्भकती और शीतल होते हैं॥११॥