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(२८२) चरकसंहिता-भा० टी०।
योगोव्याधिसुखाना, रजस्वलाभिगमनमलक्ष्मीकाणां, ब्रह्मचर्यमायुण्यकराणां, सङ्कल्पोवृष्याणां, दौर्मनस्यमवृष्याणामयथावलप्रारम्भःप्राणोपरोधिनां, विपादोरोगवर्द्धनानाम्॥३९॥ स्तम्भनीय द्रव्योम जल, यति प्यासनाशक द्रव्यामें तप्त मट्टीके ढेलेसे वुझाया जल. आमदोपकारक पदार्थोंमें बहुत भोजन, अग्निवद्ध आहारोंमें याग्निभोजन, सेवनयोग्य कालोम अभ्यासके अनुरूप कार्य, आरोग्यकर्ता उपायोंमें यथोचित भोजन, व्याधिकारकामें मलमूत्रादिकोंका वेग रोकना, आहारके गुणोंमें ताप्ति, मस्त करने में मद्य, बुद्धि धारणशक्ति स्मृति इनके नष्टकरनेवालोंमें मद्यका विकार, कठिनताले पचनेवालोम गुरु भोजन, भलीप्रकार पचनेवालोंमें एकसमय भोजन; राजय क्ष्माकारकाम मैथुन, नपुंसककत्ताओम शुक्रके वेगो रोकना, अन्नसे घृणा करानेवालोम सडा बुसा भोजन, आयु घटानेवालों में उपवास, कृशता करनेवालोंमें यथासमय भोजन न मिलना, ग्रहणीरोगकर्ता पदार्थोम अजीर्णमें भोजनअग्निविषमकर्ताओंम विषमभोजन, कुष्ठ आदिक निंदित व्याधि करनेवालोंमें मछली दूध आदि विरुद्ध द्रव्यांका एकसमय सेवन करना, हितकर्ता पदार्थों शान्ति, सब प्रकारके कुपोंमें शक्तिसे अधिक परिश्रम, रोगकारकोंमें आहार विहारका अनुचित योग, अलक्ष्मीकारकामें रजस्वलागमन, आयुवर्द्धकोंमें ब्रह्मचर्यपालन. पुरुषार्थकारकाम दृढसंकल्प, अवृष्यमें मनकी स्फूर्ति न होना, प्राण हग्नेवालाम सामर्थ्य से अधिक कार्यका करना, रोग बढानेवालोंमें विषाद प्रधान माना जाता है ॥ ३९ ॥
नानंश्रमहराणां, हर्षःप्राणनानां, शोकःशोषणानां; निर्वृतिः गुष्टिकराणामतिस्वप्नस्तन्द्राकराणां, सर्वरसाभ्यासोवलकराणासकरसाभ्यासोदौवंल्यकराणां, गर्भशल्यमनाहार्याणामजीर्णमुदाऱ्याणां, वालोमृदुभेपजीयानां, वृन्दायाप्यानां, गर्भिणीतीक्ष्णोपधव्यायामवर्जनीयानां, सौमनस्यगर्भधारकाणां, सन्निपातोदुश्चिकित्स्यानामामविपमचिकित्स्यानां, अरारोगाणां, कष्टंदीर्घरोगाणां, राजयक्ष्मारोगसमूहानां, प्रमेहोऽनुपाङ्गिणाम् ॥ १० ॥ परिश्रम दन्नवालामं स्नान. पोति बढानेवालामहर्ष, शोषणकर्ताओम पत्र शाक, सुष्मिताभआम साप, निद्राकारकाम पुरता, तंद्राकारकाम निद्रा, वलकारकॉम