________________
सूत्रस्थान-अ० २५. ( २८३) रसोंका अभ्यास, दुर्वलकर्ता पदार्थोंमें एकही रसका सेवन, अनाकर्षायोंमें गर्भशल्य, वमनके योग्योंमें अजीर्ण, मृदु औषधोंसे चिकित्सा करनेयोग्योंमें वालक, याप्यसाध्योंमें वृद्धपुरुषोंके रोग, तीक्ष्ण औषधिमें व्यायाम,पुरुष संसर्गमें इन सवसें वर्जनीयोंमें गर्भवती स्त्री, गर्भधारणमें मनकी प्रसन्नता, दुश्चिकित्स्योंमें सन्निपात, विरुद्ध चिकित्सामें आमचिकित्सा, रोगोंमें ज्वर, दीर्घरोगोंमें कुष्ठ, रोगसमूहोंमें राजयक्ष्मा, अनुषंगी रोगोंमें राजयक्ष्मा प्रधान मानेजातेहैं ॥ ४० ॥
जलौकसोऽनुशस्त्राणां,वस्तिस्तन्त्राणां,हिमवानौषधिभूमीनां, मरुभूगरोग्यदेशानामनूपमहितदेशानां,निर्देशकारित्वमातुरगुणानां,भिषक्चिकित्साङ्गानां, नास्तिकोवानांलौल्यंक्लेशकराणामनिर्देशकारित्वमरिष्टानामनिर्वेदआर्जलक्षणानां, योगोवैद्यगुणानां,विज्ञानमौषधीनां, शास्त्रसहितस्तक साधनानां सम्प्रतिपत्तिः कालज्ञानप्रयोजनानामनुद्योगोव्यवसायकालातिपत्तिहेतूनां दृष्टकर्मतानिःसंशयकराणामसमर्थताभयकराणां, तद्विद्यसम्भाषावाद्धिवर्द्धनानामाचार्य शास्त्राधिगमहेतूनामायुर्वेदोऽमृतानां, सद्वचनमनुष्ठेयानामसम्बद्धवचन संग्रहणंसर्वाहितानां, सर्वसंन्यासःसुखानामिति ॥ ४१ ॥ उपशस्तोंमें जलौका, पंचकर्मों में वस्ति, औषधियोंके योग्य भूमिमें हिमालय पर्वत, आरोग्यदेशोंमें मरुभूमि, औषधियोंमें सोमलता, अहितकारी देशोंमें अनूपदेश, रोगीके गुणोंमें वैद्यकी आज्ञाका पालन, चिकित्साके चार पादोंमें वैद्य, वर्ज नीयोंमें नास्तिक, क्लेशकाओंमें-लोभ, मृत्युके लक्षणों में रोगीकी अवाध्यता, आर्त्तके लक्षणोंमें-अस्थिरता, वैद्यके गुणोंमें उचित रीतिपर प्रयोग करना, निःसं. शयकर्ताओंमें-वैद्यसमूह, औषधियोंमें विज्ञान, साधनोंमें शास्त्रविहित युक्ति, · कालज्ञानके प्रयोजनोंमें-उत्तमज्ञान, समयनाशक हेतुओंमें आलस्य, निःसंदेहकार
कोंमें दृष्टकर्मता (जानकारी) भयकारकोंमें असमर्थता, बुद्धिविवर्द्धकोंमें स्वाध्या:: थियोंसे शास्त्रार्थ करना, शास्त्रजाननेके हेतुओंमें आचार्य, अमृतोंमें आयुर्वेद,करनयोग्य कार्यों में सत्यवचन बोलना, सब तरहसे अहित करनेवालोंमें विना विचारे बकवाद करना, परमानन्ददायकोंमें सर्वत्याग प्रधान माना है ॥ ४१ ॥