________________
(६४)
चरकसंहिता--भा० टी०।
लवंगादि मुखमें रखनेके लाभ। धा-ण्यास्येनवैशयरुचिसौगन्धमिच्छता । जातीकटुकपगानां लवङ्गस्यफलानिच ॥७० ॥ कक्कोलकफलंपत्रंताम्बूलस्यशरी तथा । तथाकर्पूरनि-सासूक्ष्मैलायाःफलानिच॥७१ ॥ मुखका शुद्धि, रुचि, और मुगधिकी इच्छा करनेवाले मनुष्यकों जायफल, लताकस्तुरी, सुपारी, लौंग, कंकोल, शुद्ध पान, कपूर, छोटी इलायची इनको मुखमें धारण करना चाहिये ॥ ७० ॥ ७१॥
तैलगण्डूषका फल । हन्वोवलंस्वरवलंवदनापचयःपरः । स्यात्परञ्चरसज्ञानमन्नेच रुचिरुत्तमा ॥७२॥ नचास्यकण्टशोषःस्यान्नौष्ठयोःस्फुटना
द्भयम् । नचदन्ताःक्षयं यान्तिदृढमूलाभवन्तिच ॥७३॥ मुखम तेलको धारण करके कुल्ले करदेना ठोडीको बल देताहै स्वरको बलवान् करताहै । मुखकी पुष्टि, रसका परिज्ञान और अन्नमें परमरुचिको पैदा करताहै७२ तथा मुख और कण्ठका सूखना, होठोंका फटना यह कदापि नहीं होता । और दांत गिरते नहीं उनकी जडं दृढ होजातीहैं ।। ७३ ॥
नशुलन्तेनचाम्लेनहृष्यन्तेभक्षयन्तिच ॥ परानपिपरान्भक्ष्यान्तैलगण्डूपसेवनात् ॥ ७४॥ तथा दांताम पीडा, और खट्टे पदार्थके खानेसे दांत खट्टे नहीं होते और बहुत की वस्तुको भी तोडसके यह मुखमं तेल धारणकरनेका फल है ॥ ७४॥
शिरम तैल मर्दनके गुण । नित्यस्नेहाशिरसःशिरःशूलंनजायवे नखालित्यंनपालित्यं नकेशाःप्रपतन्ति च ॥ ७५ ॥वलंशिरःकपालनांविशेषेणा- . भिवर्द्धते। दृढमूलाश्चदीर्घाश्चकृष्णा केशाभवन्तिच ॥७६ ॥ इन्द्रियाणिप्रसीदन्तिसुत्वरभवतिचामलम् । निद्रालाभःसुखं चस्यान्मृनितेलनिपेवणात् ॥ ७७॥ प्रतिदिन मस्तकम तेल डालनेसे-मस्तकपीडा, खालित्य : (गंज ), वालोंका संद होना, बालोंका टूटना यह कभी नहीं होते। और मस्तक तथा कपालम वल