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- सूत्रस्थान में०५..
:. दन्तधावन । आपोथिताग्रंद्वौकालौकषायंकटुतिक्तकम् । . भक्षयेद्दन्तपवनंदन्तमांसान्यवाधयन् ॥६५॥
नित्य प्रातः और सायंकाल दोनों समय कूचीयुक्तं नम्र दतौन करे दतौन कषैले, कडुए, चरपरे वृक्षकी होनी चाहिये । इसकी नरम कूचीसे एक २दांतको इस प्रकार साफ करे जिससे मसूडे न छिलजाय ॥ ६५ ।।
दन्तधावनके गुण । 'निहन्तिगन्धवैरस्य॑जिह्वादन्तास्यजंमलम्।
निष्कृष्यरुचिमाधत्तेसद्योदन्तविशोधनम् ॥ ६६ ॥ दतौन करना मुखको दुर्गन्धि और विरसताको दूर करताहै तया जीभ, दांत और 'मुखकी मैलको दूर करताहै और रुचिको उत्पन्न करताहै । दातोंको शीघ्र साफ करताहै ॥६६॥
सुवर्णादिकी जिभ्भी। सुवर्णरूप्यताम्राणिनपुरीतिमयानिच।
जिह्वानिलेखनानिस्थुरतीक्ष्णान्यनजूनिच ॥६७॥ • जीभका मैल दूर करनको सुवर्ण, चांदी, ताँवा, शीशा, पीतल, इनमेंसे किसीकी जिभ्भी होनी चाहिये वह टेढी कुछ २ नरम जो जीभको न काटडाले ऐसी होनी 'चाहिये ।। ६७॥
जिताकी स्वच्छतासे लाभ । . ... .. जिह्वामूलगतंयच्चमलमुच्छासरोधिच।
: सौगन्ध्यंभजतेनतस्माजिह्वांविनिर्लिखेत् ॥ ६८॥ उससे जीभका मैल दूर करे (कोई वृक्षकी भी मानतेहैं ) जीभका मैल उतारनेसे श्वासको रोकनेवाला मल दूर होकर मुख सुगंधित होताहै इसलिये जीभका मैल उतारडाले ॥६॥
दन्तधावनके श्रेष्ठ वृक्ष । कराकरवीरार्कमालतीककुभासनाः ।
शस्यन्तेदन्तपवनेयेचाप्येवंविधाद्रुमाः॥६९ ॥ दतौन, कंजा, कनेर, आक, मालती, कोह; विजेसार तथा और भी गुणदोषादि ' विचारकर ऐसे वृक्षकी सीधी नरम टहनीकी करनी चाहिये ।। ६९ ॥ .