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सूत्रस्थान - अ० ५.
( ६५ ) आता है । केश चिकने, दृढमूल, लंबे, और काले होते हैं ।। ७६ ॥ ७६ ॥ तेलको शरीरपर मालिस करना सब इंद्रिय और त्वचाको प्रसन्न और नरम करता है तथा निद्राको और सुखको देता है ॥ ७७ ॥
कर्ण और शरीरमें तेलसे लाभ ।
नकर्णरोगावातोत्था नमन्याहनुसंग्रहः । नोच्चैः श्रुतिर्नबाधिर्य्यस्यान्नित्यंकर्णतर्पणात् ॥७८॥ स्नेहाभ्यङ्गाद्यथाकुम्भश्चर्मस्नेहविमर्दनात् । भवत्युपाङ्गादक्षश्चदृढः क्लेश सहोयथा ॥७९॥ तथाशरीरमभ्यङ्गाद्दृढं सत्वक प्रजायते । प्रशान्तमारुताबाधं क्लेशव्यायामसंग्रहम् ॥ ८० ॥ स्पर्शनेचाधिकोवायुःस्पर्शनञ्च त्वगाश्रितम्। त्वच्यश्चपरमोभ्यङ्गस्तस्मात्तंशीलयेन्नरः ॥८१॥ नचाभिघाताभिहतं गात्रमभ्यङ्गसेविनः । विकारंभजतेऽत्यर्थं वलकर्मणिवाक्वचित् ॥ ८२ ॥ सुस्पर्शोपचिताङ्गश्च बलवान् प्रियदर्शनः । भवत्यभ्यङ्गनित्यत्वान्नरोऽल्पोजरएवच ॥ ८३ ॥
प्रतिदिन कानोंमें तेल डालना - वातजानेत कान के रोग, मन्यास्तंभ, हनुस्तम्भ, ऊंचा सुनना, और वहरापन इनको दूर करता है ॥ ७८ ॥ चिकनाईके संयोगसे जैसा घड़ा मजबूत होता है और चमड़ा नरम होता है, तथा रथका पहिया मजबूत और घूमनेवाला होताहै, ऐसे ही स्नेह मर्दनसे शरीर भी मजबूत, नरम क्लेशसहनकी शक्तिवाला दृढ होजाता है बादी नष्ट होकर रोग रहित होजाता, क्लेश और श्रमको सह सकता है ! स्पर्शमें वायुकी अधिकता है और वह स्पर्श त्वचाके आधीन हैं | तेलका मालिश करना त्वचाको बलवान् करता है इसलिये मालिस करनेका नित्य अभ्यास करे ॥ ७९ ॥ ८० ॥ ८१ ॥ नित्य स्नेह मर्दन करनेवाले शरीरमें चोट आदि असर नहीं करती। कही जोरका काम करनेमें इसको कष्ट नहीं होता ॥८२॥ और उत्तम नरम अंगोंवाला, बलवान, खूबसूरत, बुढापारहित, नित्य स्नेहमर्दनके प्रभावसे होता है ॥ ८३ ॥
पांव तेल लगाने के गुणं । खरत्वं शुष्कतांरौक्ष्यंश्रमः सुतिश्च पादयोः सद्यएवोपशाम्यन्ति पादाभ्यङ्गनिषेवणात् ॥ ८४ ॥ जायते सौकुमार्य्यञ्चवलंस्थैर्यचपादयोः । दृष्टिः प्रसादं लभतेमारुतश्चोपशाम्यति ॥ ८५ ॥