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समूलमापानुवाद अच्छे बुरेको नहिं जानते हैं। भला यह नो कहा किऐसे मुखसाध्य मार्गको छोड़कर कौन ऐसा होगा जो कठिन मार्गका आचरण करेगा: फिर भी विचार स्थूलाचार्यने कहा-तुम यह निश्चय राजो कियह मत उत्तम नहिं है। इस समय तो किम्पाकफलके समान मनोहर मालूम देता है परन्तु आगे अत्यन्त ही दुःखका देने वाला होगा। जो लोग मूलमार्गको छोड़कर खोटे मार्गकी कल्पना करते हैं वे संसार रूप बनमें भ्रमण करते हैं। जैसे मारीचादिने कुमार्ग चलाकर चिर काल पर्यन्त संसार में पर्यटन किया। यह मार्ग कभी मुक्तिप्रद नहिं हो सकता किन्तु उदर भरनेका साधन है । जब स्थूलाचार्यके ऐसे वचन मुने तो कितने भव्य साधुओंने तो उसी समय मूलमार्ग (दिगम्बर मार्ग) स्वीकार कर लिया और कितने मुनि महाक्रोधित हुये । यह टीक है कि शीतल जलस भी क्या गरम तेल प्रचलित नहिं होता ! किन्तु अवश्य होता ही है ॥७-१५॥ मिन नागनुपस्या का शुमा चरम् ॥ ॥ धूलागायन प्री म. बनमम । पारसलान्यमागप्रति मन RT ee प्राय सन्ति । अनान ने मद मकर राम मागों मनसाय परंवारनन । नसतो माया नमा चिरापला सत्सापि मनपा पनामा; I मापन. .
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