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भद्रपाहु-चरित्रचाहिये ? तथा; ऐसी कौन, स्थिति है जिससे हमें सुखः होगा ! उस वक्त विचारे. वृहस्थूलाचार्यने कहासाधुओं ! मनोभिलषित सुख देने वाले मेरे कहने पर: जरा ध्यान दो। ___ श्रीजिनभगवानके कहे हुये मार्गका आश्रय प्रण कर शीघ्र ही इस बुरे मार्गका परित्याग करो।
और मोक्षकी प्राप्ति के लिये छेदोपस्थापना लेओ। स्थूलाचार्यके कहे हुये हितकर बचन भी उन लोगोंको अनुराग जनक नहु: । ग्रन्थकार कहते हैं यह ठीक है कि जो लोग पित्तज्वरग्रसित होते हैं उन्हें शर्करा मी कड़वी लगती है । उस समय और २ मुनिलोग यौवनके घमण्डमें आकर बोले-महाराज! तुमने कहा तो है परन्तु ऐसा कहना तुम्हें योग्य नहि। क्योंकि-. इस विषम पश्चम कालमें क्षुधा पिपासादि दुस्सह वावीस परीघहोंको तथा अन्तरायादिकों कोन सहेगा ! मालूम होता है कि अब आप वृद्ध होगये हैं इसीसे सुखादा । ५ ॥ स्यूलाचार्यस्तदा धूलो ब्याजहार चची घरम् । शृणुध्वं मामिकों वाचं सापकोऽभीष्टसौख्यदाम् ॥६॥ जिनोजमार्गमादित्य हित्वा कापयमासा करध्वं शिवसंसिद्धषे छद्रोपत्यापन परम् ॥ ७. न.तयां वचः प्रील : साधूनां हितमप्यमूत । पितज्वरवा किं.न सितासि काटुकायते ॥॥ ततोऽन्ये मुनयः प्रोबुयौवनोइतबुदयः । यदुकं खरका सूरे ! तत्ते वक्तुं न युज्यते ॥९॥ यतोष विषमे काले द्वाविंशतिपरीपहान् क्षुत्पिपासातरायादोन्कः सहेताऽति-- हुस्सहान् ॥ १०॥ भवन्तः स्थविराः किचिन पिदन्ति क्षुमाऽशुभम् । मुखमाध्य