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समूलमापानुवाद। तथा दुःख देने वाला दुर्भिक पड़ेगा । संयमकी इच्छा करने वाले पुरुषोंको यह समय घान्यके समान अत्यन्त दुर्लभ होने वाला है। यहां पर जितने साधु रहेंगे वे संयमका परिपालन कमी नहिं कर सकेंगे। इसलिये हम तो यहांस अवश्य कर्णाटकदेशकी ओर जावेंगे ॥ ७०-८६ ॥
उससमय सब श्रावक लोग श्रीभद्रबाहुस्वामीके अभिप्रायोको समझ कर रामल्य स्थूलाचार्य तथा स्थूलभद्रादि साधुओंको प्रणाम कर भक्ति पूर्वक उनसे वहीं रहने के लिये प्रार्थना की। साधुओंने भी जब श्रावकोंका अधिक आग्रह देखा तो उनकी प्रार्थना स्त्रीकार कर ली। और फिर बारह वर्ष पर्यन्त वहीं रहनेका निश्चय किया।
शेष बारह हजार साधुओंको अपने साथ लेकर श्रीभद्रबाहु आचार्य दक्षिणकी ओर रवाना हुये । ग्रन्यकार कहते हैं उससमय श्रीभद्रबाहुस्वामी ठीक तारा मण्डलसे विराजित सुधांशुका अनुकरण करते थे। णाम् ॥ ४५ ॥ पतिप्यतितरां रो दुल कुलद गाम् । पारपर्दुभी गाली संयमः गनमपिणाम् ॥८६॥ स्याम्यन्ति मोगिनी पंतन पाम्यन्त गम् । सतोऽसाहिरिप्यामोऽयं वांटनामम् ॥ ४० ॥ पिभिन्ना पि . पामाशयं पुन: । रामल्यस्थूलभदाम्पत्यूलाचायांदियोगिनः RR प्रार्थयामास भात्या मरियनिहस । भासानानुपरेषन प्रतिपादनः ।। रामल्यप्रमुग्लानधुः महावादाभदमागीमानाबान सम्मा द्वादशापिंसदमा रातो गगनात म मांस बात
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