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प्रस्तावना।
. पाठक महाय!
जिस ग्रन्थको प्रस्तावना लिखनेका हम आरम करते हैं या पासवमें बहुत महत्वका है। अन्यकर्षान इस प्रन्यका संकलन कर अन जातिका बड़ा भारी उपकार किया है। इस प्रन्यके निर्माताका नाम है रखनन्दी । मापके विषयमें बहुत कुछ लिखनेकी हमारी "एकण्ठा थी परन्तु जैन समाज पेतिहासिक विषयोंको सोज करनेमें संसारमै सबसे पीछा पड़ा हुआ है और यही कारण है कि भार कोई किसी जनाचार्यको जीवनी लिखना चाहे वो पहले तो उसे सामग्री ही नहीं मिलेंगी । यदि विशेष परिश्रमसे कुछ भाग कहाँ .पर मिल भी गया तो वह उतना घोड़ा रहता है जिससे पाठकोंकी इच्या
पूरी नहीं होसकती । इसका कारण यदि हम यह है कि मनियोंमें शिक्षाषा प्रचार घहुत कम होगया है और इसीसे कोई किसी विषयकी खोजेमें नहीं लगताई"वो कोई मनुचित नहीं होगा क्योंकि ऐतिहासीय बातोंका शिक्षासे बहुत घनिष्ट सम्बन्ध है |आज संसारमें युद्धका नाम इतना प्रसिद्ध कियषा र उन्हें जानने लगा है । परन्तु जन धर्म इतने महत्वका होकर भी उसे बहुत कम लोग जानते हैं। इसका कारणच्या है ? और कुछ लोग जानते भी है तो इनमें कितने ऐसे हैं जो जनमतको स्वतंत्र मन न समझ कर पौद्धादिकी शाखा विशेष समान है। इसे हम जैनियोंकी भूल छोड़कर दूसरोंकी गल्ती नहीं कह सकते। क्योंकि जिस प्रकार बौदोंका इतिहास प्रसिद्ध होनेसे उन्हें सब जानने लगगये यदि उसी प्रकार जैनियोंका इतिहास आन यदि संसारमें प्रचलित होता तो क्या यह संभवथा कि जैनी डोग पोही संसारक किसी कोनेमें पड़े र सड़ाकर हम इसमन्ध श्रद्धापर विश्वास नहीं कर सकते।स्या माननियोंमें विद्वान, महात्मा या परोपकारी पुरुषोंकी किसी तरह कमी है जो उनके प्रसिद्ध होनेमें कोई प्रतिबन्ध हो? नहीं।
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