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रजिष्टई
बड़नगर निवासी श्री पं. उदयलाल जैन ने इस ग्रन्धको संस्कृत से हिन्दी भाषा में अनुवादित करके श्री जैन भारती भवन बनारस को इस के छापने का सब इक समर्पित किया उसी अनुसार प्रकाशक ने जैक्ट २६ सन् १८६७ के अनुसार रजिस्टरी का के सब एक साधीन रता है-अब कोई इस ग्रन्य की नकल करके पड़ेगा अथवा छपाउँगा तो राजकीय नियमानुसार फल को प्राप्त होवेगा बलम् ।
सूचना.
निस पुस्तक पर हमारी मुहर न होगी वह चोरी की समझी नायगी. इस वास्ते खरीदारों को चाहिये कि लेने समय हमारे कार्यालय की सहर छपा छेवें ।