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तेम ज विश्वानंद लक्ष्मीनो प्रकाश करनारुं सूचवे छे', तेथी ग्रंथकारनो उद्देश ऐतिहासिक हकीकतोने धार्मिक दृष्टिए प्रतिपादित करवानो पण जणाय छे. तेना ऐतिहासिक विधानो केटलीक नक्कर हकीकतो पूरी पाडे छे. आश्रित कवियो केटलीक वखत पोतना आश्रयदातानी प्रशंसा करतां अतिशयोक्ति वापरे छे, परंतु आ काव्यमां तेवा प्रयोगो मूकवामां आव्या होवानुं लागतुं नथी, तेथी ऐतिहासिक दृष्टिये पण आ ग्रन्थ महत्त्व धरावे छे. ४. वस्तुपालवंशवर्णन
ग्रन्थनी शरुआतमां कर्ता देवगुरु- मंगल स्तवन करी ग्रन्थनुं नामाभिधान व्यक्त कर्या बाद, पोताना पूर्ण भक्त अने जिनशासनना परम अनुरागी वस्तुपाळनी ओळखाण आपतां तेमना पर्वजोनो ढूंक परिचय नोंधे छे. आज कर्ताये पोताना 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी' काव्यमां वस्तुपाळ अने तेना पुरोगामी वंशधरोनुं भव्य वर्णन करता अढार श्लोको रच्या छे, ज्यारे आ महाकाव्यमां ते पांच ज श्लोकोमा समेटी दे छे. ग्रंथकार आ ग्रन्थने महाकाव्य तरीके जाहेर करे छे अने महाकाव्यना नियम मुजब चरित्रनायक- विवेचन विस्तारथी कर्बु जोइये छतां सूरीश्रीये तेने संक्षेपमा मूकवू उचित मान्युं छे, तेनुं कारण एम लागे छे के आ महाकाव्य वस्तुपालनी कीति अमर करवाना कारणथी रचवानो ग्रन्थकारनो उद्देश न हतो, पण जनसमाजने ते द्वारा उपदेश आपी तेना जेवां सत्कार्मो करवानी प्रेरणा उत्पन्न करवानो ज हतो. आथी सूरीश्रीए धार्मिक वस्तुनुं प्रधान विवेचन करवाना आशयने लई वस्तुपालना पूर्वजोनु कीर्तिगान विस्तृत रीते आ ग्रन्थमां नहि नियोज्युं होय एम मार्नु छु, छतां तेना आदिपुरुषथी वस्तुपाळ सुधीना महानुभावोनी योग्य पिछान थोडा शब्दोमां पण संपूर्णतः आपी छे. वस्तुपालचरित्र-वर्णन अने तेनां सुकृत कार्योनी आलोचना करवा लखायेला 'सुकृतसंकीर्तन', 'सुकृतकीर्तिकल्लोलिनी,', 'कीर्तिकौमुदी' अने 'वसंतविलास' वगेरे काव्योमा तेमनुं वंशवर्णन भभकदार भाषामां रजू करायुं छे ज्यारे अहींआ ग्रंथकार एक ज श्लोकमां ते बधी हकीकत जाहेर करतां कहे छे के "प्राग्वाट गोत्रमा अणहिलपुर नामक नगरने विषे चंडपनो पुत्र चंडप्रसाद थयो. जेनाथी सोम अने तेनाथी आसराज पुत्र थयो, जे कालकूटने भक्षण करनार श्रीकंठ(रुद्र)ना कंठस्थळ विषे रहेल विषज मळना नाशकर्ता नवीन अमृत जेवा यशवाळो थयो.२" कवि ट्रंकमां
१. आकल्पस्थायि धर्माभ्युदयनवमहाकाव्यनाम्रा यदीयम् ।
विश्वस्याऽऽनन्दलक्ष्मीमिति दिशति यशो-धर्मरूपं शरीरम् ॥-पंचदशसर्गान्ते २. श्रीमत्प्राग्वाटगोत्रेऽणहिलपुरभुवश्चण्डपस्याङ्गजन्मा, जज्ञे चण्डप्रसादः सदनमुरुधियामङ्गभूस्तस्य सोमः । आसाराजोऽस्य सूनुः किल नवममृतं कालकूटोपभुक्तश्रीकश्रीकण्ठकण्ठस्थलमविपदुच्छेदकं यद्यशोऽभूत् ॥१८।।