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पाटणना भंडारनी छे. ए प्रति वि. सं. १४४६मां, लक्ष्मीचन्द्र नामना एक विद्वान्नी लखेली छे जेणे प्रतिना अन्तमां, पोतानो परिचय आपतुं आ प्रमाणे- एक संस्कृत पद्य आप्युं छे
श्रीमत्प्राग्वटवंशाम्बुधिशशिसदृशो हादिगस्याडगजन्मा पुत्रो मातुस्तिलख्वाः प्रविदितचरणो रुद्रपल्लीयगच्छे । श्रीमद्देवेन्द्रशिष्यः रस-सुख-जल-भूवत्सरे काव्यमेनं
लक्षीचन्द्रो लिलेखाखिलगुणनिधयः सूरयः शोधयन्तु ॥ आ पद्यनो भावार्थ ए छे के-प्राग्वाटवंशरूपी समुद्र माटे चन्द्रमा जेवो, हादिग पतिना तिलखू मातानो पुत्र, तथा रुद्रपल्लीय गच्छना देवेन्द्र सूरिनो शिष्य,-एवा लक्ष्मीचन्द्रे संवत् १४४६मां आ काव्यर्नु आलेखन कर्यु छे (अर्थात् आ प्रतिलिपि करी छे). आ आलेखनमा जे कांई अशुद्धियो थवा पामी होय, ते विद्वानोए सुधारी लेवानी विनंति छे. आ ज लक्ष्मीचन्द्र विद्वाने, अब्दुल रहमान नामना म्लेच्छजातीय (मुसलमान) कविना अपभ्रंश भाषामां रचेला 'सन्देशरासक' नामना सुन्दर सन्देशात्मक काव्य उपर संस्कृतमां संक्षिप्त वृत्ति बनावी छे तेना अन्ते पण तेमणे पोतानुं परिचायक आ पद्य मूकेलुं छे. (ए वृत्तिनी रचना सं० १४६५मां थएली छे.) लक्ष्मीचन्द्रना हस्ताक्षरोमां लखाएली ए प्रतिना अन्तिम पृष्ठनुं प्रतिचित्र पण आ साथे मूकवामां आव्युं छे.
अन्ते, प्रस्तुत ग्रनथना मूळ संपादक स्वर्गवासी पूज्यपाद श्री चतुरविजयजी महाराजना वन्दनीय चरणोमां मारी भक्तिभरेली 'स्मरणांजलि' समर्पित करीने, तेमना मारा प्रत्ये जे स्नेहार्द्र वात्सल्यभाव हतो अने मने आ प्रकारनी साहित्योपासना करवामां तेमना तरफथी जे प्रशस्त प्रेरणा अने प्रोत्साहन मळ्यां हतां तेनो अनन्य उपकारभाव स्मरण करतो, हुं तेमना ज्ञानज्योतिर्मय अमर आत्माने पंचांग प्रणिपातपूर्वक वन्दन करुं छु.
तेम ज, पोताना परमगुरुवरना अपूर्ण रहेला ए संपादन कार्यने पूर्ण करीने तथा तेनी पूर्तिरूपे बीजा भागनुं स्वतंत्र संपादन करी आपीने, आ ग्रन्थमाला प्रत्ये पोतानो जे विशिष्ट ममत्वभाव बताव्यो छे अने ते द्वारा मने जे सौहार्दपूर्ण सहकार आपी उपकृत कर्यो छे, ते माटे सौजन्यमूर्ति परमस्नेहास्पद मुनिवर श्रीपुण्यविजयजीनो पण हुं हार्दिक आभार मानुं छु.
वसन्तपञ्चमी, वि. सं. २००५ [दिनांक ३-२-१९४९] सिंघी जैन शास्त्र शिक्षापीठ भारतीय विद्याभवन, बंबई
-जिनविजयमुनि