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धर्माभ्युदय-प्रास्ताविक
प्रस्तुत 'धर्माभ्युदय' अपर नाम 'संघपतिचरित' महाकाव्य- संपादन-प्रकाशन कार्य १२१३ वर्ष पहेलां, विद्वद्वरेण्य मुनिमतल्लिक श्रीपुण्यविजयजी तथा एमना स्वर्गवासी शिष्यवत्सल गुरुवर्य श्रीचतुरविजयजी महाराजे प्रारंभ्युं हतुं अने भावनगरनी श्री जैन आत्मानन्द साभा द्वारा प्रकाशित 'जैन आत्मानन्द-ग्रन्थ-रत्नमाला'ना एक मणका तरीके एने प्रकट करवानी योजना विचारी हती. परंतु 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला'ना गुम्फनकार्यमां तेमनी संपूर्ण सहानुभूति भरेली स्मृतिना निदर्शकरूपे तेमणे पाछळथी ए ग्रन्थने, प्रस्तुत ग्रन्थमाळाने समर्पित करवानो निर्णय करी, तेना द्वारा मारा प्रत्येनो पोतानो परमस्नेहात्मक वात्सल्यभाव प्रदर्शित करवानो मनोभाव प्रकट कर्यो. परंतु दैवना दुर्विलासथी, ग्रन्थ- मुद्रण कार्य संपूर्ण थयां पहेलां ज, पूज्यपाद श्रीचतुरविजयजी महाराजनो स्वर्गवास थई गयो अने तेथी केटलाक समय सुधी आनुं कार्य अटकी पड्यु. पोताना परम गुरुना विरहथी व्याकुळ थएला चित्तने कालक्रमे प्राप्त थएली थोडीक स्वस्थता पछी, मुनिवर श्रीपुण्यविजयजीये एनुं कार्य शनैः शनैः आगळ चलाव्यु अने यथावकाश पूर्ण कर्यु. आ रीते अहर्निश ज्ञानोपासक ए अनन्य गुरु-शिष्यनी सुप्रसादीरूपे, हवे आ ग्रन्थमणि ज्ञानाभिलाषी जनोना करमकमळमां उपस्थित करतां मने परम आनन्द अने उल्लास थाय छे. १. ग्रन्थनुं नामकरण
आ महाकाव्यनी रचना नागेन्द्रगच्छना आचार्य उदयप्रभसूरिये, पोताना परमभक्त, श्रावक श्रेष्ठ, इतिहासप्रसिद्ध गूर्जरमहामात्य वस्तुपाले करेला धर्मना 'अभ्यदुय' कार्यने उद्देशीने करी छे तेथी एनुं मुख्य नाम 'धर्माभ्युदयमहाकाव्य' एवं राखवामां आव्युं छे. वस्तुपाले, शत्रुजय अने गिरनार तीर्थनी यात्रा माटे जे भव्य संघो काढ्या हता अने ते संघोना संघपतिरूपे तेणे ए तीर्थयात्राओ दरम्यान जे उदार द्रव्यव्यय कर्यो हतो तेने लक्षीने एनुं बीजं नाम 'संघपतिचरित' एवं पण आपवामां आव्युं छे.
आ ग्रन्थनो विस्तृत परिचय आपतो एक अभ्यासपूर्ण लेख, पाटणनिवासी विद्वान् लेखक श्रीकनैयालाल भाईशंकर दवेए लख्यो छे जे 'भारतीय विद्या' नामक संशोधन विषयक पत्रिकाना, प्रस्तुत ग्रन्थमाळाना संस्थापक स्व० बाबू श्री बहादुरसिंहजी सिंघीनी पुण्यस्मृति निमित्ते, म्हें प्रकट करेला त्रीजा पुस्तकमां प्रकाशित थयो हतो. ए लेखमां अभ्यासी लेखके, प्रस्तुत ग्रन्थ साथे संबन्ध धरावती घणी खरी ज्ञातव्य बाबतो उपर बहु ज सरस प्रकाश पाड्यो छे, तेथी ते समग्र लेख आना 'आमुख' तरीके आ पछी आपवामां आव्यो छे. भाई श्रीकनैयालाले जे अभ्यास, उत्साह, श्रम अने श्रद्धापूर्वक ए लेख तैयार कर्यो छे अने तेम