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________________ देवे ज्ञाननी पिपासानो नाद मुनिओमा प्रवर्ताव्यो. तेमणे पोते व्याकरण, न्याय साहित्यना ग्रंथोना अभ्यास साथे जैन शासनमा सर्वशास्त्रो अवगाह्यां अने व्याकरण, न्याय विगेरेना अनेक महाकाय ग्रंथो बनाव्या. आर्नु परिणाम ए आब्यु के आनो प्रभाव समग्र शासन उपर पडयो अने जैन शासनमा अभ्यासनी रुचि प्रगटी. ठेर ठेर तत्त्वज्ञाननी जिज्ञासा जागी अने सर्व समुदायो पण पठन पाठननी प्रवृत्तिथी गाजबा लाग्या. . आम खलं कहीये तो आ काळा ज्ञाननादने पल्लवित करवानुं मूळ जो कोइ होय तो स्व. पूज्य आचार्यदेवज छे. प्रतिष्ठा अंजनशलाका. शासन अने तेनां बधां अंगोर्नु अस्तित्व अने विकास तेना देवतत्त्व उपर छे. आगमो ए देवनी वाणी छे. मुनिओ ए देवना वचनने अनुसरीने भेख लेनारा छे अने क्रोडोनो व्यय पण श्रावका देवना वचनने अनुलक्षीने करे छे. भगवाननी मूर्ति देवसदृशज छे ते तो प्रतिष्ठा अने अंजनशलाकाथीज बनी शके तेम छे. अंजनशलाका अने प्रतिष्ठाथी देवतत्त्व प्रगटावq ए पवित्र अने प्रभावक पुरुष सिवाय संभवतुं नथी. स्व.पू. आचार्यदेवे सेंकडो वर्षथी विसरायेली आ विधिने जाग्रत् करी अने विशाळस्वरुपमा सौ प्रथमज तेमना हाथे अंजनशलाका, कदंबगिरिमां थई. आरीते सर्व विधिविधानोना उद्गम पण आकाळे स्व. पूज्य आचार्यदेवज छे. प्रभावना. आतापना के प्रभावना कोने कहेवाय तेनी शब्दोथी आपणे भले व्याख्या करीए पण खरी समज तो आ काळे जेणे पामवी होय ते तेमना दर्शन विना पामी शके तेम नथी. मोटा मोटा मुंडधारी अने फटाटोप करनारा संन्यासीओ सर्वशास्त्रना पारगामीपणानो अभिमान धरावता विद्वानो. आजनी केळवणीथी मोटी मोटी विश्वविद्यालयना अध्यक्षपदे विराजता चेरमेनो के दलील अने वकीलातमां सर्वश्रेष्ठ गणाता काउन्सीलरो, धनथी जमीनथी अद्धर चालनारा धनाढयो, राज्यखटपट अने कुशळतामा पंकाता जुदा जुदा राज्यना कर्मचारीओ अने अतिवैभवथी उछरेला राजवीओ आ बधाए जेओना प्रथम दर्शने पोताने अल्प मानी तेमना चरणकमळमां झुकावता. आ सर्व आ काळे निहाळg होय तो स्व. पूज्य आचार्यदेवने निहाळतांज बनी शके तेम हतुं. भावनगर अने धांगध्राना दीवानो, मालवीयाजी अने आनंदशंकर बापुभाई जेवा आधुनिक विद्वानो, सेतलवड अने भूलाभाई जेवा धाराशास्त्रीओ, स्व. मनसुखभाई भगुभाई अने स्व, लालभाई दलपतभाई जेवा क्रोडाधिपतिओ अने भावनगर नरेश, वळानरेश विगेरे राजवीओने जेमनी पासे बेसी तत्त्वपान करता जेमणे निहाळ्या छे तेज खरेखर प्रभावना मातापना कोने कहेवाय ते समजी शके तेम छे. "Aho Shrutgyanam"
SR No.009536
Book TitleSammatitarka Maharnavatarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydarshansuri
PublisherJainmarg Prabhavaka Sabha Madras
Publication Year
Total Pages556
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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