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आ संमति प्रकरण ग्रंथ उपर विद्यमान जो कोई टीका होय तो २५००० श्लोक प्रमाण एक ज तत्वावबोधिनी टीका छे. तेना उपर लघु के, मध्यम वीजी कोई टीका न होवाथी आ ग्रंथन वांचन करवानी हिंमत न्यायशास्त्रना सारा अभ्यासी सिवाय भाग्येज बीजो कोई सामान्य विद्वान् धरी शके छे. आ ग्रंथ उपर कोई सरळ मध्यम टीका थाय तेवी परमपूज्य शासनसम्राट आचार्यदेव विजयनेमिसरीश्वरजी महाराजजीनी इच्छा हती अने ते करवानी आज्ञा तेमना नव्य न्यायना प्रकाण्ड अभ्यासी पू. आ. विजयदर्शनसूरिजीने करी के संमतितर्क उपर मध्यमवृत्ति रचो के जेथी सेंकडो अभ्यासौने उपकार थाय. अने हमेशनी त्रुटि पुरी थाय.
पूज्यापादश्री गुरुमनी आज्ञाने शिरसावंद्य करी दर्शनमूरि महाराजे संमतिप्रकरणनीपू.आ. अभयदेवसरिनी टीकानो साद्यंत मनन पूर्वक अभ्यास करी तथा तेना उपयोगी अनेक ग्रंथोनो अभ्यास करी टीका बनावी आमां तेओश्रीए मूळकारना आशयने अने बृहत् टीकाकारना विवरणने पूर्ण न्याय आपे ते रोते संक्षिप्त विवरण करी आ महाप्रमावक ग्रंथने सुलभ बनाववा प्रयत्न कयों छे. अने तेने ज लइने अभयदेवमूरिनी तत्त्वावबोधिनी टीका वादमहार्णव नामधारक छे तेमां आ टीका अवतारिका समान होइ तेमणे टीकार्नु सन्मतिमहार्णवावतारिका राखेल छे. जे टीकाने माते आपेली प्रशस्तिमां बालोपकारिणी शब्द ख्याल आपे छे. सन्मति प्रकरण माटेनी आवश्यक वृत्ति पुरी पाडी पू. आ. दर्शनसूरि महाराजे जैनसमाज उपर महान उपकार कर्यों छे,
सन्मतितर्क महार्णवावतारिकाकारना गुरुदेव आ टोकाना रचयिता पू. आ. दर्शनसूरीश्वरजी महाराज छे. तेओश्रीनो अल्पपरिचय पण तेमना गुरु अने सकल जैनशासनना शिरताज आचार्यदेव विजय नेमिसूरीश्वरजी महाराज साहेबना परिचय विना अपूर्ण ज रहे तेम छे. नेमिसरियुग
तपागच्छनी परंपरामां पूज्य आचार्यदेव विजयने मिसूरीश्ररजी महाराज ७४ मी पाटे आवे छे.
पूर्वकाळमां हरिभद्रयुग, हैंमयुग विगेरे अमुक समयने ते ते काळना प्रभाविक पुरुषना नामथी साहित्यकारोए अने इतिहासकारोए ते काळनी समग्र प्रवृत्ति उपर ते प्रभावक पुरुषनी प्रभाव होवाथी ते काळने ते ते महापुरूषना युग तरीके ओळख्यो छे. तेम वर्तमानमां पण
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