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विश्वलोचनकोश:
चचतुर्थम् ।
काकचिश्वी तुलाबीजे वारिक्रिमिदिलीरयोः । जलसूचिर्जलौकायां शृङ्गाटे शिशुमारके ॥ २२ ॥ कङ्कत्रोटौ झषे चाथ चोरे वह्नौ मलिम्लुचः । अमावास्याद्वयं यत्र सोऽपि मासो मलिम्लुचः ॥ २३ ॥ चपंचमम् ।
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रतनारीच शब्दोऽयं कुक्कुरे रतिवल्लभे । परीरम्भे समुद्भूतशीत्कारे च वरस्त्रियाः ॥ २४ ॥
इति विश्वलोचने चान्तवर्गः ॥
अथ छान्तवर्गः । छैकम् |
छरछेदकार्कयोश्छा च च्छिदि छं लाच्छनाऽच्छयोः ।
चचतुर्थ |
काकचिंची-घुंघुची, जलकी किमि,
स
मत्स्य- मात्र,
भुईफोड, (स्त्री० ) जलसूचि - जोक, सिंघाडा, मच्छभेद ( शिशुमार ) ॥ २२ ॥ फेदचीलकी चोंच, ( पुं० स्त्री० ) भलिम्लुच - चोर, अनि, जिसमासमें दो अमावास्या हों वह मास, ( पुं० ) ॥ २३ ॥
चपंचम | रतनारीच - कुत्ता, कामी
[ छान्तवर्ग
शीत्कार शब्दवाला श्रेष्ठस्त्रीका सम्भोग ( पुं ) ॥ २४ ॥
De
इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें चान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥
"Aho Shrutgyanam"
अथ छान्तवर्गः । छैक ।
छ- छेदन करनेवाला, सूर्य, (पुं० ) छा- छेदनकरना, ( स्त्री० ) पुरुष, छ- कलंक, स्वच्छ, ( न० ) ।