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________________ विश्वलोचनकोशः [चान्तवर्गे वचः शुके वचा तूपगन्धासारिकयोः स्त्रियाम् । वाग्भारतीगिरोर्वीचिद्वयोः खल्पतरङ्गयोः ॥ १० ॥ अवकाशे सुखे चाथ शचीन्द्राणी शतावरी । शुचिः पुंस्युपधाशुद्धमन्त्रिण्याषाढबर्हिषोः ॥ ११ ॥ शृङ्गारग्रीष्मयोः श्वेतमेध्यानुपहते त्रिषु । सूची कराधभिनये वेधनीशिखयोरपि ॥ १२ ॥ सूची सीमन्तिनीनां च कथिता करणान्तरे ॥ १३ ॥ चतृतीयम् । अवीचिर्नरके घूर्मिविरहे घूर्मिवर्जिते । भवेदुदक् त्रिषूदीच्ये दिग्देशकालतोऽव्ययम् ॥ १४ ॥ कणीचिः पुष्पितलतागुञ्जयोः शकटेऽपि च । कवचो वारबाणे स्यात्पटहे गर्दभाण्डके ॥ १५॥ --..-...--- वच-सूवा (तोता) पक्षी, (पुं०) योंका करण ( हावभेद ) (स्त्री०) वचा बच-औषधि, मैना-पक्षी,(स्त्री०) ॥ १३ ॥ वाकू(चा)-सरखती, बाणी (वचन) चतृतीय । (स्त्री०) वीचि-स्वल्प ( थोड़ा) तरङ्ग, ॥१०॥ अवीचि-नरक,तरंगोंका वियोग त. अवकाश, सुख, (पुं० स्त्री.) | गवर्जित तडाग आदि, (त्रि०) शचि-इंद्राणी, शतावरी, ( स्त्री० ) उदक-उत्तरमें होनेवाला (त्रि० ) शुचि-मंत्रियोंके शीलकी परीक्षा, । उत्तरदिशा, उत्तरदेश, उत्तरकाशुद्धमंत्री, आषाढ-मास, कुशा, शू ल ( अ०) ॥ १४ ॥ झार, ग्रीष्म-ऋतु, श्वेत रंग, पवित्र, कणीचि-फूलीहुई बेल, चिरमटी, अच्छा, (त्रि. ) ॥ ११ ॥ गाडी, ( स्त्री०) सची हाथ आदिसे भाव बताना,सूई, | कवच-कवच, ढोल, बडीहरड. ___ शिखा (चोटी) ॥ १२ ॥ स्त्रि- (पुं०)॥ १५॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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