________________
विश्वलोचनकोशः- [गान्तवर्गेउन्नते वाच्यवत्तुङ्गस्तुङ्गः पुन्नागशैलयोः । बर्बरानिशयोस्तुगी त्यागो दाने च वर्जने ॥ ८॥ दुर्गः स्यादुर्गमे दुर्गा चण्डीनीलिकयोर्मता । नगस्तु पर्वते वृक्षे नगो भानुभुजङ्गयोः ॥ ९ ॥ नागः पन्नगपुन्नागनागकेसरदन्तिषु । नागदन्तकजीमूतमुस्तके क्रूरकर्मणि ॥ १० ॥ देहाऽनिलान्तरे श्रेष्ठे श्रेष्ठ एवोत्तरस्थितः । नागं तु सीसके रङ्गे स्त्रीबन्धकरणान्तरे ॥ ११ ॥ पिङ्गः पिशङ्गे पिङ्गी तु शम्यां पिङ्गं तु बालके । पिङ्गा रामठनील्यां स्यादुमारोचनयोरपि ॥ १२ ॥ पूगस्तु निकुरम्बे स्यात्पूगः क्रमुकपादपे फल्गुमलप्वामाख्याता निष्फले फल्गु वाच्यवत् ॥ १३ ॥
----- -- --- ------- तुङ्ग-ऊँचा, (त्रि.)चंपा, पर्वत, (पुं०)। शब्दके आगे जुडा हुआ श्रेष्ठको ही तुगी-बर्बरी ( तिलवणी ) शाक, कहनेवाला, (पुं० ) सीसा, राँग, _ हलदी, (स्त्री०)
स्त्रियोंके वाँधनेका उपकरण (न०) त्याग-दान वर्जना, (पुं०)॥ ८॥ ॥११॥ दुर्ग-दुर्गमस्थान (किला) (पुं०) दुर्गा-चंडी (देवी), नीलीका वृक्ष,
पिंग-पिंगलवर्ण (पुं०) पिंगी जाँट(स्त्री०)
। वृक्ष, ( स्त्री० ) बालक, (न०) नग-पर्वत, वृक्ष, सूर्य, सर्प, (पुं०)॥९॥ पिगा-हींग, नीला-वृक्ष, उमा (देवी) नाग-सर्प चंपा, नागकेसर, हस्ती,
___ गोरोचन, (स्त्री०) ॥ १२ ॥ हाथी दाँत, मेघ, नागरमोथा, ऋर. पूग-समूह, सुपारीका वृक्ष, (पुं० ) कर्म करनेवाला, ॥ १० ॥ शरीरमें फल्गु-कठूमर वृक्ष, ( स्त्री० ) निष्फल रहनेवाला एक वायु, श्रेष्ठ, किसी 1 (निःसार) (त्रि.) ॥ १३ ॥
"Aho Shrutgyanam"