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कचतुर्थम् ।] भाषाटीकासमेतः।
पञ्चालिका भवेद्वस्त्रपुत्रिकागीतभेदयोः । पिण्डीतकस्तु तगरे मदनाद्रौ फणिज्जके ॥ २०१ ।। स्तनवृन्ते पिप्पलकः क्लीबं सीवनसूत्रके। पुण्डरीकोऽग्निदीप्ताङ्गे व्याघ्रभेदेक्षुभेदयोः ॥ २०२ ॥ पुण्डरीक सितच्छत्रे सिताम्भोजेऽपि भेषजे । पुष्कलको गन्धमृगे कीलके क्षपणेऽपि च ॥ २०३॥ क्लीबं पूर्णानकं पूर्णपात्रे पटहपात्रयोः । पोतक्यां विचलपोताधाने पोतीनकं मतम् ॥ २०४ ॥ प्रकीर्णक ग्रन्थभेदे प्रशस्ते चामरे ये । प्रवर्तकः शराघाते बहें पुष्पभुजङ्गयोः ॥ २०५ ॥ फर्फरीकश्चपेटे स्यात्फर्फरीकं तु मार्दवे । बकेरुका बकीभेदे वातावर्जितपल्लवे ॥ २०६॥
पंचालिका-वस्त्रकीपुतली, गीतभेद, पूर्णानक-पूर्णपात्र, पटह ( बाजा), (स्त्री०)
। पात्र, (न.) पिंडीतक-तगर-वृक्ष, मैन-वृक्ष, जं- पोतीनक-पोतकी ( शकुनचिडिया),
भीरीभेद, (पुं०)॥ २०१॥ छोटी मछलियोंवाला कुंड आदि, पिप्पलक-स्तनोंका अग्रभाग, (पुं०) (न० ) ॥ २०४ ।।
सोनेके लिये सूत्र, (न०) प्रकीर्णक-ग्रंथविशेष, श्रेष्ठ, चवर, पंडरीक-अग्निसे दीप्त अंगवाला, अश्व, ( न० )
व्याघ्रभेद, इक्षु (गन्ना) भेद, प्रवर्तक-बाणका घाव, मोरपंख, (पुं०)॥ २०२ ॥
पुष्प, सर्प, (पुं० )॥२०५॥ पुण्डरीक-सफेदछत्र, सफेदकमल, फर्फरीक-थप्पड, (पुं०) कोमलता औषधि, (न.)
न०) पुष्कलक-गन्धमृग, कीला, क्षपण बकेरुका-बकीभेद (बटेर-पक्षी), वा
(मुनि) (पुं०)॥ २०३ ॥ । युसे हिलायेहुए पत्र (स्त्री०)२०६॥
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