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विश्वलोचनकोश:- [ कान्तवर्गततरीकः पारगे स्यात्ततरीकं बहित्रके । तिक्तशाकस्तु वरुणे खदिरे पत्रसुंदरे ॥ १९५ ॥ त्रिवर्णकं त्रिकटुके त्रिफलायां च गोक्षुरे । दन्दशूकस्तु यक्षे स्याद्दन्दशूको भुजङ्गमे ॥ १९६ ॥ दलाढकः वयंजाततिले चाम्पेयकुन्दयोः । शिरीषपृश्निकावात्याखातकेषु महत्तरे ॥ १९७ ॥ गैरिके करिकणे च फेनेऽग्निकणसंहतो। द्रोणे च कार्यकूटे च क्वचिदृष्टो दलाढकः ॥ १९८ ॥ दासेरकस्तु करभे दासीपुत्रेऽपि धीवरे। नियामकः पोतवाहे कर्णधारे नियन्तरि ॥ १९९ ॥ निर्ग्रन्थिकस्तु क्षपणे निष्फलेऽप्यपरिच्छदे ।
निश्चारकोऽनिले खरे पुरीषस्य क्षयेऽपि च ॥ २०० ॥ तर्तरीक-पारपहुंचनेवाला, (पुं०) पक्षी, कार्यमें झूट बोलनेवाला __ जहाज आदि ( न०)
(पुं०)॥ १९८ ॥ तिक्तशाक-बरणा, खर, पत्रसुंदर, दासेरक ऊँट, दासीपत्र, झीमर
(शिमा शाक) (पुं०)॥ १९५॥ जाति, (पुं० ) त्रिवर्णक-सूठ-मिरच-पीपल, हरड
| नियामक-नावसे दुष्टजन्तुओंको बबहेडा-आंवला, गोखरू, ( न० ) दन्दशूक-यक्ष-जाति, सर्प, (पुं० )
चानेवाला मल्लाह, नौका चलाने. ॥ १९६ ॥
| वाला, प्रेरणाकरनेवाला, (पुं० ) दलाढक-स्वयं उत्पन्न हये तिल. ॥१९९ ॥
चंपा, कुन्द, सिरस-वृक्ष, पृष्टिपर्णी, निर्गन्थिक-क्षपणक-मुनिभेद, नि. वायुसमूह, खोदाहुवा, बहुत बडा, फल, वस्त्रादिसे रहित, (पुं० ) ॥ १९७ ॥ गेरू, हाथीका कान, निश्चारक-वायु, यथेच्छ-मनुष्य, झाग, अमिकणोंका समूह, काग- विष्ठा का नष्ट होना, (पुं० ) २००
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