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विश्वलोचनकोश:
अवरोहे हस्तिपके मानारोहणयोरपि ।
उत्साहस्तूद्यमे सूत्रतन्तावपि पुमानयम् ॥ १२ ॥ कटाहो घृततैलादिपाकामत्रेऽपि कर्परे । दीपेऽपि कूर्मपृष्ठेऽपि कटाहो महिषीशिशौ ॥ १३ ॥ कलहो भण्डने युद्धे खड्गकोषे वराटके । दात्यूहः कालकण्ठेऽपि तथा वन्दिविहङ्गमे ॥ १४ ॥ नवाहो नूतनदिने नवाहः प्रतिपत्तिथौ । निग्रहो भर्त्सने बन्धे मर्यादायां च निग्रहः ॥ १५ ॥ निर्यूहो द्वारि निर्यासे शिखरे नागदन्तके । निरूहो बस्तिभेदे स्यात्तर्कनिश्चितयोरपि ॥ १६ ॥ पटहस्तु समारम्भे न स्त्री पटहमानके । प्रग्रहस्तु तुलासूत्रे बन्धे च नियमे भुजे ॥ १७ ॥
[ हान्तवर्गे
॥ १२ ॥
उतारना, फीलवान, प्रमाण-भेद, नवाह-नवीन दिन, प्रतिपदा तिथि चढना ( पुं० ) ( पुं० ) उत्साह - उद्यम, सूत्रतन्तु, (पुं० ) निग्रह - झिड़कना, बंधन, मर्यादा ( सीमा ) ( पुं० ) ॥ १५ ॥ निर्यूह - दरवाजा, वृक्षका गोंद आदि, शिखर, हाथीदांत ( पुं० ) निरूह - बस्तिभेद, तर्क, निश्चित (पुं०) ॥ १६ ॥
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कटाह-घृत तेल आदिमें पाक करनेका पात्र, घटआदिका खप्पर, दीप, कछुवाकी पीठ, भैंसका छोटा बच्चा | ( पुं० ) ॥ १३ ॥ कलह - बहुत बोलना, युद्ध, खड्गको श, कौड़ी, (पुं० ) दात्यूह - जलकाक पपीहा ( पुं० ) प्रग्रह - तराजूका सूत्र ( चोटिया )
पटह-समारंभ ( आरंभ ) ( पुं० ) ( पुं० न० )
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॥ १४ ॥
बंधन,
नियम, भुजा ॥ १७ ॥
" Aho Shrutgyanam"