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________________ ३८४ विश्वलोचनकोशः- [षान्तवर्गे १० सुरे मत्स्येऽप्यनिमिषः सुरे मत्स्येऽनिमेषवत् । अम्बरीषो रणे भ्राष्ट्रेऽम्बरीषो भूभृदन्तरे ॥ ३३ ॥ मार्तण्डे खण्डपरशौ कपीतनकिशोरयोः । अलम्बुषः पुमानेव मतश्छर्दनपादपे ॥ ३४ ॥ अलम्बुषा तु मुण्डीरीवर्गवेश्याप्रभेदयोः । तुरङ्गवदने लोकभेदे किंपुरुषः पुमान् ॥ ३५ ॥ नन्दिघोपः पार्थस्थे स्तुतिपाठकघोषणे। परिघोषस्त्ववाच्ये स्यान्निनादे वारिदध्वनौ ॥ ३६॥ पलङ्कषा गोक्षुरके लाक्षागुग्गुलकिंशुके। मुण्डीरीरास्नयोश्चैव राक्षसे तु पलङ्कषः ॥ ३७॥ शृङ्गीभेदे महाघोषा पुंसि हट्टेऽतिघोषयोः । वातरूषस्तु वातूलेऽप्युत्कोचे शक्कार्मुके ॥ ३८ ॥ इति विश्वलोचनेऽपराभिधानायां मुक्तावल्यां षान्तवर्गः ॥ अनिमिष-अनिमेष-मच्छ, देवता परिघोष-नहींकहनेयोग्य शब्द, शब्द(पुं० ) | मात्र, मेधका गर्जना (पुं० ) ३६ अम्बरीष-रण, भाड़, एक राजा ३३ | पलंकषा-गोखरू, लाख.गगल केस. सूर्य, महादेव, अंबाडा-वृक्ष, कि- गोरखमुंडी, रायसन (स्त्री०) शोर ( जवान) (पुं० ) पलंकष-राक्षस (पुं० ) ॥ ३७॥ अलंबुष-छर्दन ( वमन) करनेका "महाघोषा-काकडासींगी, (स्त्री) - वृक्ष (पुं० ) ॥ ३४ ॥ अलंबुषा- गोरखमुंडी, वर्गवेश्या- महाघोष-हाट, अतिशब्द (पुं० ) भेद, (स्त्री० ) वातरूष-वायुको नहीं सहनेवाला, किंपुरुष-देवयोनिभेद (किन्नर), रिश्वत, इद्रका धनुष (पु० ) ३८ लोकभेद ( पुं० )॥ ३५॥ इसप्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें नंदिघोष-अर्जुनका रथ, स्तुतिकरने- षान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ वालाका शब्द (पुं०) - "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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