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विश्वलोचनशकोशः- [ शान्तवर्गेदृग् दर्शने च नेत्रे स्त्री ज्ञातृदर्शकयोस्त्रिषु । दंशः सन्नाहवनमक्षिकयो जगक्षते ॥ ८ ॥ दोषेऽपि खण्डने दंशो दंशो मर्माणि च स्मृतः । नाशः पलायनेऽपि स्यान्निधनानुपलम्भयोः ॥ ९॥ स्यान्निशा निगडे क्वापि स्त्रियां रात्रिहरिद्रयोः । निशा दारुहरिद्रायां महापूर्वा निशार्द्धके ॥ १० ॥ पशुप॑गादौ च प्रमथे पशुर्मासारिकात्मनि । अज्ञाने छागमात्रेऽपि पशु हव्यर्थमव्ययम् ॥ ११ ॥ पाशः पक्षादिबन्धे स्याच्चयार्थस्तु कचात्परः। छात्राद्यन्ते च निन्दार्थः कर्णोते शोभनार्थकः ॥ १२ ॥ पांशुधूलिषु शस्यार्थचिरसञ्चितगोमये ।
पेशी पललपिण्ड्यां स्यान्मांसीखड्गपिधानयोः ॥ १३ ॥ दृक्-दर्शन, नेत्र, ( स्त्री० ) जानने- पशु-देवताकी हविका दान, (अ.) वाला, देखनेवाला ( त्रि०)
॥ ११ ॥
पाश-केशोंका बांधना, केशवाचक दंश-कवच, वनमक्खी, सर्पका डंक
शब्दसे परे पाश-शब्द समूह अर्थ॥ ८ ॥ दोष, खंडन, मर्म, (पुं०)
वाला है जैसे 'केशपाश' अर्थात् नाश-भागना, मरना, नहीं प्राप्त- केशसमूह, छात्रआदिके अंतमें होना (पुं०) ॥ ९ ॥
निंदार्थक है जैसे 'छात्रपाश' निशा-बेडी, रात्रि, हलदी, दारु
कर्णके अंतमें सुंदरार्थक है जैसे हलदी, (स्त्री०)
'कर्णपाश' (पुं० ) ॥ १२॥ महानिशा-अर्धरात्रि ( स्त्री० ) १०
...पांशु-धूलि, खेतीके लिये बहुतदिन
का इकट्ठाकिया गोबर, (पुं०) पशु-मृग आदि, शिवगण, मांसारि- पशी-मांसकी पिंडी, जटामांसी,
का आत्मा, अज्ञानी, छागमात्र, तलवारका म्यान, अच्छा पका(पुं०)
हुवा कणिक, मंडभेद, (स्त्री०) १३
"Aho Shrutgyanam"