SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 386
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७२ विश्वलोचनशकोशः- [ शान्तवर्गेदृग् दर्शने च नेत्रे स्त्री ज्ञातृदर्शकयोस्त्रिषु । दंशः सन्नाहवनमक्षिकयो जगक्षते ॥ ८ ॥ दोषेऽपि खण्डने दंशो दंशो मर्माणि च स्मृतः । नाशः पलायनेऽपि स्यान्निधनानुपलम्भयोः ॥ ९॥ स्यान्निशा निगडे क्वापि स्त्रियां रात्रिहरिद्रयोः । निशा दारुहरिद्रायां महापूर्वा निशार्द्धके ॥ १० ॥ पशुप॑गादौ च प्रमथे पशुर्मासारिकात्मनि । अज्ञाने छागमात्रेऽपि पशु हव्यर्थमव्ययम् ॥ ११ ॥ पाशः पक्षादिबन्धे स्याच्चयार्थस्तु कचात्परः। छात्राद्यन्ते च निन्दार्थः कर्णोते शोभनार्थकः ॥ १२ ॥ पांशुधूलिषु शस्यार्थचिरसञ्चितगोमये । पेशी पललपिण्ड्यां स्यान्मांसीखड्गपिधानयोः ॥ १३ ॥ दृक्-दर्शन, नेत्र, ( स्त्री० ) जानने- पशु-देवताकी हविका दान, (अ.) वाला, देखनेवाला ( त्रि०) ॥ ११ ॥ पाश-केशोंका बांधना, केशवाचक दंश-कवच, वनमक्खी, सर्पका डंक शब्दसे परे पाश-शब्द समूह अर्थ॥ ८ ॥ दोष, खंडन, मर्म, (पुं०) वाला है जैसे 'केशपाश' अर्थात् नाश-भागना, मरना, नहीं प्राप्त- केशसमूह, छात्रआदिके अंतमें होना (पुं०) ॥ ९ ॥ निंदार्थक है जैसे 'छात्रपाश' निशा-बेडी, रात्रि, हलदी, दारु कर्णके अंतमें सुंदरार्थक है जैसे हलदी, (स्त्री०) 'कर्णपाश' (पुं० ) ॥ १२॥ महानिशा-अर्धरात्रि ( स्त्री० ) १० ...पांशु-धूलि, खेतीके लिये बहुतदिन का इकट्ठाकिया गोबर, (पुं०) पशु-मृग आदि, शिवगण, मांसारि- पशी-मांसकी पिंडी, जटामांसी, का आत्मा, अज्ञानी, छागमात्र, तलवारका म्यान, अच्छा पका(पुं०) हुवा कणिक, मंडभेद, (स्त्री०) १३ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy