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________________ ३६८ विश्वलोचनकोश:- [ वान्तवर्गेविभावः स्यात्परिचये कामस्योद्दीपनेऽपि च शत्रूणां भावसंहत्योः शात्रवं शात्रवो द्विपि ॥ ५२ ॥ सुषवी कारवेल्ले स्याज्जीरके कृष्णजीरके । पाडवस्तु रसे नागेऽप्याशुव्रीहिप्रसूनयोः ॥ ५३ ॥ नौकायां वासने चाथ सचिवो भृत्यमन्त्रिणोः । सम्भवः स्मृत उत्पत्तौ हेतौ सत्त्वे च मेलके ॥ ५४॥ आधारानतिरक्तत्वे आधेयस्य च सम्भवः । सुग्रीवो वानरपतौ चारुग्रीवे तु वाच्यवत् ॥ ५५ ॥ सैन्धवो माणिमन्थेऽश्वे सिन्धुदेशभवे त्रिषु । वचतुर्थम् । अनुभावः प्रभावे स्यान्निश्चये भावसूचके । अपह्नवोऽपलापेऽपि पुंसि स्नेहेऽप्यपह्नवः ॥ ५६ ॥ विभाव-परिचय (पहचान), कामको (सत्य ), मिलना, ॥ ५४ ॥ आधे उद्दीपन करनेवाला रस, (पुं०) । यकी आधारसे एकता, (पुं०) शात्रव-शत्रुवोंका भाव और संहति सुग्रीव-बंदरोंका पति, (पुं०) सुंदर(समूह), (न.) __ ग्रीवावाला, (त्रि.) ॥ ५५ ॥ .शात्रव-शत्रु, (पुं० ) ॥ ५२ ॥ सैंधव-सेंधानमक, अश्व, (पुं० ) सुषवी-करेला, जीरा, कालाजीरा, सिंधुदेशमें होनेवाला, (त्रि.) . (स्त्री०) वचतुर्थ । पाडव-रस, सीसा, चावल, पुष्प, अनुभाव-प्रभाव, निश्चय, भावको ॥ ५३ ।। नौका, वासना, (त्रि०) सूचन करनेवाला, (पुं) सचिव-नौकर, मंत्री, (पुं०) । अपहव-छिपाहुवा वाक्य, स्नेह, सम्भव-उत्पत्ति, हेतु (कारण), सत्व। (पुं० ) ॥ ५६ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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