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________________ वद्वितीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । ३६१ देवी भट्टारिकायां च तेजनीक्योरपि । नाट्योक्यां चाभिषिक्तायां देवी देवी नृपस्त्रियाम् ॥ ९॥ द्रवः स्यान्नमणि रसे प्रद्रावे विद्रवे गतौ । द्वन्द्वं तु मिथुने युग्मे द्वन्द्वः कलहगुह्ययोः ॥ १० ॥ धवः पत्यौ पुमान्वृक्षभेदे धूर्ते नरेऽपि च ।। ध्रुवः क्लीबे शिवे शङ्कौ मुनौ योगे वटे वसौ ॥ ११ ॥ ध्रुवं तु निश्चिते तर्के नित्यनिश्चलयोस्त्रिषु ।। ध्रुवा मूर्वाशालिपोर्गीतिस्रुग्भेदयोरपि ॥ १२ ॥ नवः काके स्तुतौ पुंसि नवं नव्येऽभिधेयवत् । नीवी तु स्त्रीकटीवस्त्रग्रन्थौ मूलधनेऽस्त्रियाम् ॥ १३ ॥ मतं पक्कं परिणते विनाशाभिमुखे त्रिषु । पार्श्व कक्षाऽघरे चक्रोपान्ते पशुगणाऽन्तिके ॥ १४ ॥ देवी-भट्टारककी स्त्री,बड़ी मालकांगनी, ध्रुव-निश्चित, तर्क, (न० ) नित्य, असवरम, (स्त्री०) नाट्यमें अभि- निश्चल (त्रि.) षेककरी हुई रानी, राजाकी रानी ध्रुवा-चुरनहार या मरोरफली, माष(स्त्री०)॥९॥ पर्णी या मषवन, गीतिभेद, स्रुक्द्रव-ठट्ठा, रस, झिरना. विशव भेद, (स्त्री.)॥१२॥ (दौड़ना), (पुं०) नव-काग, स्तुति, (पुं० ) नव नवीन, (त्रि.) द्वंद्व-स्त्रीपुरुषका जोड़ा, दो संख्या, नीवी-स्त्रीके कटिवस्त्रकी ग्रंथि (बंधन), (न०) द्वंद्व-कलह गोप्य, (पुं०) ___मूलधन, (स्त्री०) ॥ १३ ॥ ॥ १० ॥ पक्क-परिणामको प्राप्तहुवा, नाशको धव-पति, वृक्षभेद, धूर्त मनुष्य, प्राप्त होनेवाला, (त्रि.) (पुं०) पार्श्व-बगलके नीचे का भाग, (पसध्रुव-नपुंसक, शिव, कीला, मुनि, वाड़ा), चक्र का अंतभाग, पाँसुयोगभेद, बड़वृक्ष, वसुभेद, (पुं०) चोंका समूह, समीप, (न०) ॥ ११ ॥ ॥ १४॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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