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________________ ३५९ वैकम् । भाषाटीकासमेतः । कृपीटपालः पुंस्येव केनिपातसमुद्रयोः ॥ १७६ ॥ ॥ स्यात्पाण्डुकम्बलः श्वेतकम्बले ग्रावदन्तरे । विवाहदिनसम्बन्धशिरोमाल्येऽपि सम्मता ॥ १७७ ॥ मता सुरतताली तु दूतिकामस्तकस्रजोः । मत्रचूर्णलमिच्छन्ति वशीकरणवेदिनि ॥ १७८ ॥ डाकिनीमोक्षमन्त्रज्ञे कुशाम्बुप्रोक्षणेऽपि च ॥ १७९ ॥ इति विश्वलोचनेऽपराभिधानायां मुक्तावल्यां लकारान्तवर्गः ॥ अथ वान्तवर्गः। वैकम् । वः कुम्भे वरुणे व स्यादिवार्थे सांत्वनेऽव्ययम् । वा वाततातयोग्रन्थौ विः खगाकाशयोः पुमान् ॥ १॥ स्वो ज्ञातावात्मनि स्वं तु त्रिष्वात्मीये धनेऽस्त्रियाम् । कृपीटपाल-पतवार, समुद्र, (पुं०)। इस प्रकार विश्वलोचनकी भाषाटीकामें ॥ १७६ ॥ लान्तवर्ग समाप्त हुवा । पांडुकंबल-सफेद कंबल, पत्थरभेद, अथ वान्तवर्गः। (पुं०) वैकम् । सुरतताली-विवाहदिनकी शिरकी | व-कुंभ, वरुण, (पुं० ) व-इव-अमाला, (स्त्री०)॥ १७७ ॥ व्ययका अर्थ (सादृश्यार्थ ), दूती, मस्तककी माला, ( स्त्री० )। सांत्वना ( अव्यय ), ॥ १७८ ॥ वा-वायु, तात (पिता पुत्र आदि), (पुं० ) मंत्रचर्णल-वशी करण जाननेवाला, वि-पक्षी, आकाश (पुं०)॥१॥ डाकिनी छोडने का मंत्र जाननेवाला, स्व-जाति, आत्मा (पुं० ) स्वकुशाके जलसे प्रोक्षण (छींटादेना), आत्मीय ( अपना ), (त्रि०) (पुं० ) ॥ १७२॥ ____ धन, (पुं० न० ) "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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