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________________ लद्वितीयम् ।] भाषाटीकासमेतः। मल्लो बलाढ्ये सुभगे मल्ली तु कुसुमान्तरे । मालुः पत्रलतायां स्याद्वनितायामपि स्त्रियाम् ॥ ४६॥ मालं क्षेत्रे जने मालो माला पुष्पादिदामनि । मूलमाद्यशिफापार्श्वकुञ्जे मूलेऽपि तारके ॥ ४७ ॥ मसिमेलकयोर्मेला मौलिर्धम्मिल्लचूडयोः । किरीटेऽपि द्वयोरेव पुंसि वञ्जुलपादपे ॥ ४८ ।। लीला हावान्तरे स्त्रीणां केलौ खेलाविलासयोः । लोला जिह्वाश्रियोलोलः सतृष्णचलयोस्त्रिषु ।। ४९ ।। व्यालः शठे भुजङ्गे च श्वापदे दुष्टदन्तिनि । शलं तु शल्लकीलोम्नि शलो भृङ्गिगणे विधौ ॥ ५० ॥ शालो मत्स्यान्तरे वृक्षसामान्ये हालभूभुजि । शाला वेश्मनि वेश्मैकप्रदेशे स्कन्धशाखयोः ॥ ५१ ।। मल्ल-पहलवान, अच्छे ऐश्वर्यवाला, लीला-स्त्रियोंका हावभेद, क्रीडा, (पुं० ) । खेलना कूदना, विलास, (स्त्री० ) मल्ली-पुष्पभेद, ( मोतिया-भेद ) लोला-जीभ, लक्ष्मी, (स्त्री० ) (स्त्री० ) लोल-तृष्णावाला, चंचल (त्रि.) मालु-पान-बेल, स्त्री, (स्त्री०)॥४६॥ माल-क्षेत्र, (न०) व्याल-शठ (मूर्ख ), सर्प, वनजीव, माल-जन (पुं०) ___ खोटाहस्ती (पुं० ) माला-पुष्पआदिकी लडी, ( स्त्री० ) मल-आदिमें होनेवाला, वृक्षकी जड, शल-सेहकी शूल (न.) भंगिनामका समीप, कुंज (लताकुटी ), मूल- गण, चंद्रमा (पुं० ) ॥ ५० ॥ नक्षत्र ( न.)॥४७॥ शाल-मत्स्यभेद, वृक्षमात्र, हाल मेला-स्याही (अंजन ), मिलना नामका राजा, (पुं० ) (स्त्री०) शाला-मकान, मक्कानका एक हिस्सा, मौलि-केशवेश, चोटी, मुकुट ( पुं० डाहला, शाखा (टहनी )(स्त्री० ) बी०) अशोक-वृक्ष (पुं०) ॥४८॥ ॥५१॥ २२ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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