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विश्वलोचनकोश:
दोला यानान्तरे नील्यां धूलिः शङ्खयान्तरे रजे । नलः पोटगले राज्ञि कपीशे पितृदेवते ॥ २८ ॥ नली मनः शिलायां स्यान्नलं तु सरसीरुहे । पद्मदण्डे न ना नाला नाली शाककदम्बके ॥ २९ ॥ नाला पानकरङ्कादिरन्ध्रे नालस्तु पञ्जरे । नीलस्तु कृष्णवर्णे स्यात्रिषु नीलः कपीश्वरे ॥ ३० ॥ नीलो नगान्तरे कृष्णे नीलं वृक्षाङ्कभेदयोः । पल्ली तु कुट्यां कुग्रामे पलः स्थूलकुसूलयोः ॥ ३१ ॥ पलं मांसे तथोन्माने पालिः पङ्किप्रदेशयोः । प्रस्थे कर्णलताशे यूकासश्मश्रुयोषितोः ॥ ३२ ॥ इन्द्रादेर्देयभागे च विश्राम्य चागतज्वरे ।
अश्रौ चिह्न च पिलस्तु क्लिन्नेऽक्षिण त्रिषु तद्वति ॥ ३३ ॥
दोला - सवारीभेद ( डोली ), नीली, | नील- पर्वतभेद, काला द्रव्य, (पुं० ) ( स्त्री० ) नील-वृक्ष, अंकभेद, ( न० ) धूलि - संख्याभेद, रज (धूल), (स्त्री०) पल्ली - कुटिया, कुग्राम, ( स्त्री० ) नल- कास या देवल, नल - राजा, पल - बडा, कुठला, (पुं० ) ॥ ३१॥ वानरोंका राजा, पितृदेव, (पुं०) २८ पल- मांस, उन्मान ( तोल ), चार नली - मनसिल ( स्त्री०) नल - कमल तोला, ( न० ) पालि-पंक्ति, प्रदेश ( स्थल ), ६४ तोला, कर्णलताका अग्रभाग, विभाग, जूं, डाढीमूछोंवाली स्त्री ॥ ३२ ॥ इंद्रआदिको देनेयोग्य भाग, विश्राम करके आयाहुवा ज्वर, कोण चिह्न, (त्रि० )
( न० ) नाला-कमलकी डंडी ( स्त्री० न० ) | नाली - शाकका समूह ( स्त्री० )
॥ २९ ॥
नाला-पीना, हड्डी आदिका छिद्र,
( स्त्री० ) नाल - पिंजरा ( पुं० ) नील- काला रंग (त्रि० ) नीलकपीश्वर ( पुं० ) ॥ ३० ॥
[ लान्तवर्गे
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पिल्ल - चिड़पडा नेत्र, चिडपडानेत्रवाला, (त्रि ० ) ॥ ३३ ॥
"Aho Shrutgyanam"