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रचतुर्थम् । ]
भाषाटीकासमेतः ।
भवेच्चक्रधरो विष्णौ भुजङ्गे ग्रामजालिनि । चराचरं तु भुवने स्यादि जङ्गमे त्रिषु ॥ २६६ ॥
चर्मकारः पुमान्पादृकृति चर्मकषौषधौ । चर्मकारी स्त्रियां चित्राटीरस्तु रजनीपतौ ॥ २६७ ॥
घण्टाकर्णवलिहत च्छागास्रतिलकेऽपि च । जटाटीरो जटायां स्यादोकणे पार्वतीपतौ ॥ २६८ ॥
वरोहे पादपानां च समावेदोक्तवैजवे ।
रण्डायां तालपत्री स्यात्तालपत्रं तु कुण्डले ॥ २६९ ॥ तुङ्गभद्रा नदीभेदे तुङ्गभद्रो मदोत्कटे । तुण्डिकेरी तु कर्पास्यां चित्रिकायामपि स्त्रियाम् ॥ २७० ॥ तुलाधारस्तुलाराशौ तुलाधारो वणिक्ष्वपि । भवेत्तोयधरो मेघे मुस्तके सुनिषण्णके ॥ २७१ ॥
चक्रधर - विष्णु, सर्प, ... ( पुं० ) चराचर जगत्, अभिप्रायके अनु रूप चेष्टा, जंगम ( चलनेवाला ), ( त्रि० ) ॥ २६६ ॥
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चर्मकार - चमार जाति ( पुं० चर्मकारी - थोहरका भेद (स्त्री० ) चित्राटीर - चंद्रमा, घंटाकर्णयक्षकी
बलिके लिये माराहुवा बकराके रुधिरका जिसने तिलक किया है। वह, ( पुं० ) ॥ २६७ ॥ जटाटीर-जटा, महादेव, (पुं० )
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॥ २६८ ॥ वृक्षकी जडसे चलकर आगेतक गई हुई शाखा ( पुं० ) तालपत्री - रंडा स्त्री, (स्त्री० ) तालपत्र - कुंडल ( न० ) ॥ २६९ ॥ तुंगभद्रा नदीभेद (स्त्री० ) तुंगभद्र - मदोन्मत्त (पुं० ) तुंडिकेरी - कपास, कन्दूरी, (स्त्री० )
॥ २७० ॥
तुलाधार - तुला राशि, बणियां, (पुं०) तोयधर - मेघ, नागरमोथा, चौप
तिया या सिरिआरी शाक, (पुं० )
॥ २७१ ॥
"Aho Shrutgyanam"