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विश्वलोचनकोश:- [रान्तवर्गेमूर्वायां बिम्बिकायां च स्त्रियां कर्मकरी कचित् । कलिकारस्तु धूम्याटे पीतमुण्डे करञ्जके ॥ २६० ॥ कादम्बरस्तु दध्यने मद्यभेदेऽपि न द्वयोः । कादम्बरी परभृतासीधुगीःसारिकास्वपि ॥ २६१ ॥ कालंजरो योगिचक्रमेलके भैरवे गिरौ । देशभेदेऽपि पार्वत्यां भवेत्कालञ्जरी मता ॥ २६२ ॥ कुम्भकारः कुलाले स्यात्कुलथ्यां तु स्त्रियामपि । कृष्णसारो मृगे पुंसि त्रुहीशिंशपयोः स्त्रियाम् ।। २६३ ॥ गङ्गाधरो गिरिसुतानाथे नाथे च पाथसाम् । गिरिसारस्तु लौहे स्यान्मलयाचललिङ्गयोः ॥ २६४ ।। कम्बलच्छन्नदोलायां कुन्थाङ्गेऽपि गृहाम्बरः । घनसारोऽप्सु कर्पूरे दक्षिणावर्तपारदे ॥ २६५॥
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कर्मकरी-चुरनहार या मरोरफली, कुंभकार-कुम्हार,(पुं०)कुंभकारी___ कन्दूरी, ( स्त्री०)
कुलथी (स्त्री०) कलिकार-खुटकबलैया-पक्षी, गुर- कृष्णसार-मृग (पुं०)
सल-पक्षी, करंजुवा (पुं० ) २६० कृष्णसारा-थोहर, शिंशपा-वृक्ष कादंबर-दहीकी मलाई (पुं०) (स्त्री० ) ॥ २६३ ॥ मद्यभेद (न.)
| गंगाधर महादेव, समुद्र (पुं०) कादंबरी-कोयल, सीधु ( वारुणी), गिरिसार-लोहा, मलयाचल-पर्वत,
वाणी, मैना-पक्षी (स्त्री० ) लिङ्ग (पुं०) ॥ २६४ ॥ ॥ २६१ ॥
गृहांबर-कंबलसे ढकीहुई डोली, कालंजर-योगिचक्रका मिलाप, भैरव, गुदड़ीवाला मनुष्य, (पुं०)
एकपर्वत, देशभेद, (पुं०) घनसार-जल, कपूर, दक्षिणावर्त कालंजरी-पार्वती (स्त्री०) २६२/ पारा (पुं०) ॥ २६५॥
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