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________________ विश्वलोचनकोशः [रान्तवर्गबर्करस्तरुणे वाच्यलिङ्गो मेषे तु वर्करः। वल्लूरं त्रिषु संशुष्कमांसे मांसे च दंष्ट्रिणः ॥ २११ ॥ वल्लूरस्तूपरे क्लीव वनक्षेत्रेऽपि वाहने । वल्लरी वल्लरं चैव मञ्जर्यामथ वल्लरः ॥ २१२ ॥ शाद्वले निर्झरस्थाने बिल्वक्षेत्रनिकुञ्जयोः । वशिरः सिन्धुलवणकिणिहीभकणार्थकः ॥ २१३ ॥ वारं दक्षिणावर्त्तशर्के वारि च वार्दरम् । वादेरं रक्तगुञ्जायां बीजेपि कृमिजेऽपि च ॥ २१४ ॥ धूपेऽपि पक्षिवासाय गृहकुम्भेऽपि वासतुः। विकारो विकृतौ रोगे विदारो दारणे रणे ॥ २१५ ॥ विदुरः पण्डिते खिङ्गे कौरवाणां च मत्रिणि । विधुरं तु प्रविश्लेषे प्रत्यवायेऽपि तन्मतम् ॥ २१६ ॥ व(ब)र्कर-जवान (त्रि०) मेंढा (पुं०) वादर-दक्षिणावर्त्त शंख, जल, लाल वल्लूर-सूखा मांस, सूकरका मांस, धुंधुचीके बीज, बायबिडंग ॥२१४॥ (न० ) ॥ २११॥ वासतु-धूप, कबूतरआदिपक्षियों के वल्लर-ऊपर-भूमि, वनक्षेत्र, वाहन, निवासके लिये घरमें गाडाहुवा कुंभ (न.) (पुं० ) वल्लरी-वल्लर-मंजरी, (स्त्री० न०) विकार-विकृति, रोग ( वीमारी) ॥ २१२ ॥ (पुं० ) वल्लर-हरिततृणवाली भूमि, झिरना, विदार-फाडना, रण, (पुं० ) बिल्वक्षेत्र ( एक क्षेत्र), निकुंज ॥२१५॥ (लताकुटी) | विदुर--पंडित, विदग्ध, कौरवोंका वशिर-समुद्र नोंन, चिरचिरा ( अपा मंत्री, (पुं०) मार्ग ), गजपीपल, ( पुं० ) विधुर-अत्यंत वियोग, दोष, (न.) ॥ २१३ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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