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रतृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः ।
मर्मरी दारुवर्णिन्यां पीतदारौ च मर्मरी। मसुरो मसुरश्चैव ब्रीहिभित्पण्ययोषितोः ॥ २०५ ॥ मसूरा मसुरा चात्र मसूरी पापरुग्भिदि । मिहिरस्तपने बुद्धे महेन्द्रे वासवे गिरौ ॥ २०६ ॥ स्यात्पारिपाश्चिके भानोजिभेदेऽपि माठरः। मायूरं चापि मार्जार क्रीडाबन्धे च तद्गणे ॥ २०७ ।। मार्जार ओतौ खट्टाशे मुदिरः कामुकेऽम्बुदे । लोष्टादिभेदनोपाये मल्लीभेदेऽपि मुद्गरम् ॥ ॥ २०८॥ मुसुरः सूर्यतुरगे तुषवह्नौ च मन्मथे । मुहिरः पुंसि मदने मूर्खे तु मुहिरस्त्रिषु ।। २०९ ॥ रुधिरं कुङ्कुमे रक्ते रुधिरो भूमिनन्दने ।
वठरः कमठेऽपि स्याद्वठरः शठवस्त्रयोः ॥ २१० ॥ मर्मरी-दारुवर्णिनी (......) देव | मार्जार-बिलाव ( मार्जार ), खटाश दारु ( स्त्री. )
(वनमार्जार ) (पुं० ) मसूर-मसुर-व्रीहिभेद, (पुं० ) मुदिर-कामीपुरुष, मेघ, (पुं० ) मसूरा-मसुरा-वेश्या (स्त्री० ) मदर-डला आदिके फोडनेका अस्त्र, ॥ २०५ ॥
____ मल्लिका (मोतिया) भेद (न०)२०८ मसूरी-पाप और रोगभेद, ( स्त्री० ) मिहिर-सूर्य, बुद्ध भगवान् (पुं०) मु
मुर्मुर-सूर्यका अश्व, तुषकी अग्नि, महेन्द्र-इंद्र, पर्वत, (पुं० )॥२०६॥
म
कामद
कामदेव (पुं०) माठर-सूर्य के समीप होनेवाला एक मुहिर-कामदेव, ( पुं० ) मूर्ख
ग्रह, द्विज ( ब्राह्मण ) भेद (पुं०) (त्रि० ) ॥ २०९ ॥ मायूर-मार्जार-क्रीडाबन्ध, (...) रुधिर-केसर, लोही, (न०)रुधिर
और क्रमसे मयूर व मार्जारों मंगल-ग्रह ( पुं० ) ( बिलाओं) का समूह ( न०) वठर-कछुवा, शठ, वन (पुं० ) ॥ २० ॥
॥२१० ॥
"Aho Shrutgyanam"