________________
२९२
विश्वलोचनकोश:- [ रान्तवर्गसूत्रं तु सूचनाग्रन्थे सूत्रं तंतुव्यवस्थयोः । स्थिरस्तु निश्चले मोक्षे शालपर्णीभुवोः स्थिरा ॥ ९० ॥ स्फारः स्याद्विकटे स्फारः करटादेश्च बुद्बुदे । स्वरोऽकाराद्युदात्तादिमध्यमादिषु निखने ॥ ९१ ॥ स्वरो नासासमीरेऽपि स्वैरं स्वच्छन्दमन्दयोः। स्वरुर्वब्रे शरे यज्ञे यूपखण्डेऽपि च स्वरुः ॥ ९२ ॥ हरिगोविन्दवारीन्द्रचन्द्रवातेन्द्रभानुषु । यमाऽहिकपिभेकाश्वशुके शोकान्तरे त्विषि ॥ ९३ ॥ त्रिषु पिङ्गेऽपि हरिते हारो मुक्तावलौ युधि । हिंस्रा काकादनीमांस्योर्हिस्रः स्याद्धातकेऽन्यवत् ।। ९४ ।। रक्तैरण्डेऽप्यथ व्याघी स्पृश्या श्रेष्ठे परस्थितः ।
शक्रः पुलोमजाकान्ते कुटजेऽर्जुनपादपे ॥ ९५ ॥ सूत्र-सूचनाग्रंथ, तंतु ( सूत), व्यव- सूर्य, ॥ ९३ ॥ धर्मराज, सर्प, व___ स्था ( नं०)
न्दर, मेंडक, अश्व, सूबा (तोता), स्थिर-निश्चल, मोक्ष, ( पुं०)
शोकभेद, कान्ति, (पुं०)पिंगल वर्ण. स्थिरा-शालपणी-औषधि, पृथ्वी, वाला, हरितवर्णवाला (त्रि.)
(स्त्री० ) ॥ ९० ॥ .. । हार-मोतियोंकी लड़ी, युद्ध, (पुं०) स्फार-विकट (सकड़ा),ओलाआदिका ॥ ९४ ॥ बुद्बुदा, (पुं०)
हिंस्रा-काकादनी-वृक्ष या कौआस्वर-अकार आदि, उदात्तआदि, ठोडी, जटामांसी, ( स्त्री० )
मध्यम षड्ज आदि, शब्द (ध्वनि)| हिंस्त्र-घातक ( जीव मारनेवाला) (पुं०)॥ ९१ ॥
(त्रि०) रक्तअरंड, (पुं० ) स्वर-नासिकाका वायु (पुं०) व्याघ्री-कटेहली, ( स्त्री०) व्याघ्र. खैर--स्वच्छन्द, मन्द, (त्रि.) शब्द अन्यशब्दके आगे जुड़ाहुवा स्वरु-वज्र, बाण, यज्ञ, यज्ञस्तंभका श्रेष्ठवाचक कहा है, (पु.)
टुकड़ा (पुं० ) ॥ ९२॥ शक्र-इंद्र, कुडा-वृक्ष, अर्जुन-वृक्ष, हरि-विष्णु, वरुण, चंद्रमा, वायु, इंद्र, (पुं० ) ॥ ९५ ॥
"Aho Shrutgyanam"