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________________ २८४ विश्वलोचनकोशः- [रान्तवर्गे-- बुद्धदर्शनदेव्यां च दृग्मध्यतारके न ना। तीरस्त्रपौ नटे तीरं तटे प्रादुत्तरं च तत् ॥ ४२ ॥ तीव्रमत्यन्तकटुके नितान्ते तद्वतोस्त्रिषु । तीबा तु कटुरोहिण्यामासुरीगण्डदूर्वयोः ॥ ४३ ॥ वेणुके प्राजने तोत्रं दरोऽस्त्री भीतिगर्तयोः । दरी स्यात्कन्दरे स्त्री तदीषदर्थे दराऽव्ययम् ॥ ४४ ॥ दस्रः खरेऽप्याश्विनेये दारु स्याद्देवदारुणि । अस्त्री स्वारेऽप्यथ क्लीबं द्वारं द्वाराऽभ्युपाययोः ॥ ४५ ॥ धरः कच्छपनाथे स्याद्विरौ कोसतूलके । धरा धरण्यां स्त्रीणां च गर्भाधारेऽपि मेदसि ॥ ४६ ॥ धात्री त्वामलकीक्षित्योरुपमातरि मातरि । धारस्तु धारासम्पातवर्षणे स्यादृणेऽपि च ॥ ४७ ॥ बुद्धधर्मकी देवी, (स्त्री०) नेत्रका | दस्र-गर्दभ, अश्विनीकुमार, (पुं०) तारा (स्त्री० न० ) दारु-देवदार-वृक्ष (न०) पीतल तीर-रांग, नट, (पुं० ) तीर (पुं० न० ) तीर-प्रतीर-तट-नदी आदि का, द्वार-दरवाजा, अभ्युपाय ( अंगीकार (न. ) ॥ ४२ ॥ । या उपाय ) ( न० ) ॥ ४५ ॥ तीव्र--अत्यंत चर्चरा, अत्यर्थ, (न०) ___ कटुरसवाला, अत्यर्थवाला (त्रि.)। धर-कूर्माधिप ( बड़ा कछुवा), पर्वत, । कपासकी रूई, (पुं०) तीवा-कुटकी, राई, गाँडर दूब,(स्त्री.) धरा-पृथ्वी, स्त्रियोंका गर्भाशय, मेद, तोत्र-चावुक, पैनी, ( न. ) (स्त्री०)॥ ४६ ॥ दर-भय, खड्डा, ( पुं० न० ) धात्री-आँवला, पृथ्वी, धाय ( स्तन दरी-गुफा, (स्त्री०) ___प्यानेवाली), माता (स्त्री०) दर-ईषत्का अर्थ ( थोड़ा) (अ-धार-धारापूर्वक बरसना, ऋण, व्यय ) ॥ ४४ ॥ } (पुं० ) ॥ ४७ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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