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________________ २८० विश्वलोचनकोशः [रान्तवर्गेक्रूरस्त्रिषु नृशंसे स्यादपि निर्दयघोरयोः । क्रोष्ट्री शृगालिकाक्षीरविदारीलाङ्गलीष्वथ ॥ १८ ॥ देवताडे द्वये तीक्ष्णे त्रिषु ना गर्दभे खरः। खरुर्दशन ईशेऽश्वे दपै पुंसि सिते त्रिषु ॥ १९ ॥ खुरः शफे कोलदले खड्गादेश्वरणेऽपि च । गरो विषे चोपविषे गरं करणरोगयोः ॥ २० ॥ गात्रं गजाग्रजङ्घादिविभागेऽप्यङ्गदेहयोः । गिरिगीी गिरियकग्रावनेत्रगदेषु ना ॥ २१ ॥ गिरिः पूज्येऽन्यलिङ्गः स्याद्भारत्यां भाषणे च गीः। गुरुनिषेकादिकरे पित्रादिसुरमत्रिणोः २२ ।। गुरुस्त्रिषु स्यान्महति दुर्जरे वाऽलघुन्यपि । गुन्द्रस्तेजनके गुन्द्रा मुस्तके भद्रमुस्तके ॥ २३ ॥ कर-हिंसाकरनेवाला, निर्दय, भयंकर। गर-करण, रोग, ( न० ) ॥ २० ॥ (पुं० ) गात्र-जका अग्रभाग, जंघा आदिक्रोष्टी-गीदड़ी, क्षीरविदारीकंद, कलि- विभाग, अंग, शरीर, ( न० ) हारी, ( स्त्री.)॥ १८ ॥ गिरि-निगलना, खिन्न, पर्वत, नेत्ररोग खर-देवताड़, (पुं० स्त्री०) तीक्ष्ण, : (पुं० ) ॥ २१ ॥ (त्रि. ) गर्दभ, (पुं०) गिरि-पूज्य, (त्रि.) खरु-दांत, महादेव, अश्व, अभिमान, गिर-सरस्वती, भाषण, ( स्त्री० ) (पुं०) सफेदरंगवाला, (त्रि.) गुरु-निषेक (गर्भाधान ) आदि ॥ १९ ॥ ___ संस्कार करानेवाला, पिता आदि, खुर-पशुका खुर,नख नामका गंधद्रव्य, देवताओंका मंत्री, (पुं० ॥२२॥ ___गैंडा आदिका चरण, ( पुं०) गुरु-महान् , दुर्जर, भारी, (त्रि.) गर-विष, उपविष (धतूरा आदि ) गुन्द्र-सरकंडा, (पुं० ) (पुं०) गुंद्रा-मोथा, भद्रमोथा, ॥ २३ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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