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विश्वलोचनकोश:- [यान्तवर्गेपृष्ठस्थायिबले नीतौ समवायेऽपि सन्नयः। समयः पुंसि सिद्धान्तशपथाचारसंविदि ॥ ११४ ॥ कालसिद्धान्तनिर्देशक्रियाकारेषु सङ्गमे । मेलके योगियोगिन्योः समयः क्वापि दृश्यते ॥ ११५ ॥ सरण्युरिदे वाते सामर्थ्य योग्यताबले । सौकर्य स्यादनायासे क्रियायां सूकरस्य च ॥ ११६ ॥ सौभाग्यं सुभगत्वे स्याद्योगभेदे पुमानयम् । सौरभ्यं तु सुगन्धत्वे गुरुत्वे गुणगौरवे ॥ ११७ ॥ संस्त्यायः सन्निवेशेऽपि संस्थाने विस्मृतौ गणे। हरिण्यमक्षये द्रव्ये वराटे स्वर्णरेतसि ॥ ११८ ॥ घटिताऽघटितवर्णरूप्ययोर्मानभिद्यपि । बुक्कायां हृदयं ज्ञेयं हृदयं हृदि वक्षसि ॥ ११९ ॥
सन्नय-पिछाड़ी स्थितहुई सेना, सौभाग्य-सुभगपना ( न०) योगनीति, समूह, (पुं० )
भेद, (पुं० )
सौरभ्य-सुगंधपना, गुरुपना, गुणोंसे समय-सद्धान्त, सायन, आचार, बडप्पन, ( न० ) ॥ ११७ ।।
बद्धि ॥ ११४ ॥ काल, सिद्धान्त, संस्त्याय-अच्छोतरह बना हुवा वासनिर्देश, क्रियाकार, संगम, कहीं। स्थान, अच्छीतरह स्थिति, विस्तार, योगी और योगिनीके मिलाप में ( पुं० ) भी समय देखा है (पुं० ) हिरण्य-अक्षय, द्रव्य, कौडी, सुवर्ण, ॥ ११५॥
वीर्य, ॥ ११८ ॥ घड़ाहुवा नहीं सरण्यु-मेघ, वायु, (पुं०) घड़ाहुवा सुवर्ण और चाँदी, मान
भेद, (न०) सामर्थ्य-योग्यता, बल, ( न०) ।
बल 10 हृदय-हृदयके अंदर कमलाकार सौर्य-विनापरिश्रम, सूकरकी क्रिया। मांसभेद, हृदय, छाती, (न०) ( न०) ॥ ११६ ॥
॥ ११९ ॥
"Aho Shrutgyanam"