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________________ मद्वितीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । गमो घृतान्तरे मार्गेऽप्यपर्यालोचितेऽपि च । गुल्मः स्तम्बे चनूरक्षासैन्ययोः लीहघट्टयोः ॥ १० ॥ गुल्मी स्थादामलक्येलावनिकावस्त्रवेश्मसु । ग्रामः खरे संवसथे वृन्दे शब्दादिपूर्वकः ॥ ११ ॥ धर्मः स्यादातपे ग्रीष्मे ऊष्मखेदजलेऽपि च । जाल्मः स्यात्पामरे क्रूरे जाल्मोऽसमीक्ष्यकारिणि ॥ १२ ॥ जिह्मं तु तगरे जिह्मस्त्रिषु स्यान्मन्दवक्रयोः । हरिद्यवेऽपि हरिते तोक्मस्तोक्मं श्रुतेले ॥ १३ ॥ दमस्तु दमने दण्डे दमथे कर्द्दमेऽपि च । दस्मो वैश्वानरे चौरे यजमानेऽपि च स्मृतः ॥ १४ ॥ २४३ द्रुमस्तु पादपे पारिजाते किंपुरुषेश्वरे । धर्मः स्यादस्त्रियां पुण्ये धर्म्मो न्यायस्वभावयोः ॥ १५ ॥ गुल्म- गुच्छा, सेनाकी रक्षा, सेनाभेद, तिल्ली, घाट, (पुं० ) ॥ १० ॥ गुल्मी -आँवला, इलायची, वनी गम- जूवा, मार्ग, अच्छी तरह नहीं | जिह्न - तगरका वृक्ष, ( न० ) मंद, देखा हुवा, (पुं० ) कुटिल, (त्रि० ) तोक्म-हरा जव, हरा ( सबजा ), ( पुं० ) कानका मैल, ( न० ) ॥ १३ ॥ ( छोटावन ), तंबू - डेरा, (स्त्री० ) ग्राम- खरभेद, ग्राम (गाँव), ग्रामके पूर्व शब्द आदि लगानेसे समूह, ( जैसे - शब्दग्राम ) (पुं० ) ॥११॥ धर्म - धूप, ग्रीष्म ऋतु, गरमी, नाका जल, ( पुं० ) द्रुम-वृक्ष, कल्पवृक्ष, कुबेर ( पुं० ) जाल्म-नीच, क्रूर, बिनाविचारे कर | धर्म-पुण्य, (पुं० न०) नेवाला ( पुं० ) ॥ १२ ॥ पसी धर्म -- न्याय, स्वभाव, (पुं० ) ॥ १५ ॥ दम-दमनकरना ( इंद्रियोंको शांत क. रना) दंड देना, रोकना, कीचड़ (पुं० ) दस्म - अनि, चोर, यजमान, (पुं० ) ॥ १४ ॥ "Aho Shrutgyanam" 4
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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