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________________ धद्वितीयम् ।] भाषाटीकासमेतः । १७७ प्रदीप्ते त्रिषु ऋद्धं तु सम्पन्नान्नसमृद्धयोः । ऋद्धिः स्यादोषधीभेदे योगशक्तौ च बन्धने ॥ ४ ॥ गन्धो गन्धकसम्बन्धलेशेष्वामोदगर्वयोः ।। गाधः स्थानेऽपि लिप्सायां गोधा तलनिहाकयोः ॥ ५॥ दग्धा स्थितार्ककाष्ठायां दग्धं प्लुष्टेऽन्यलिङ्गकः । दधि स्याच्छ्रीधने क्लीबं दधि श्रीवासवासयोः ॥ ६ ॥ विषाक्तविशिखे दिग्धो दिग्धं लिप्तार्थकेऽन्यवत् । त्रिषु प्रपूरिते दुग्धं दुग्धं क्षीरेऽपि न द्वयोः ॥ ७॥ वत्से गोपे कवौ दोग्धा दोग्धाऽप्यर्थोपजीविनि । सज्जे संपूर्वकं नद्धं नद्धं तद्वृत्तबद्धयोः ॥ ८ ॥ आधिबन्धनयोर्वेधो बन्धः संपूर्वकोऽन्वये । बन्धूकपादपे बन्धुर्वधूभ्रातरि बान्धवे ॥ ९ ॥ ऋद्ध-सिद्धहुवा अन्न, (न. ) समृद्ध दिग्ध-विषलगायाहुवा-बाण, (पुं०) (संपत्तिवाला,) (त्रि.) किसीवस्तुमें लिप्तहुवा पदार्थ (त्रि०) ऋद्धि-ओषधीभेद, योगशक्ति, बं- दुग्ध-प्रपूरितकिया हुवा, (त्रि.) __ धन, (स्त्री०)॥४॥ दूध, (न.)॥ ७ ॥ गन्ध-गन्धक, संबंध, लेश ( सूक्ष्म-दोग्धा-बछड़ा, गोपालक, कवि, ___ अंश), सुगंध, अभिमान, (पुं०) पदार्थोसे जीविकावाला, (पुं०) गाध-स्थान ( स्थितहोना), लेनेकी संनद्ध-कवचधारी, (त्रि०) इच्छा, (पुं०) नद्ध-निकलाहुवा, बँधाहुवा, (त्रि.) गोधा-धनुषकी ज्याको निवारण कर ॥८॥ नेका, जलगोह (स्त्री०)॥ ५॥ वेध-चित्तपीडा, बंधन, (पुं० ) दग्धा-स्थितहै सूर्य जिसमें वह दिशा, संबंध-अन्वय, जहांतहांका इकट्ठा (स्त्री०) जलाहुवा, ( त्रि०) होना, (पुं०) दधि-दही, सरलवृक्षका गोंद, तेजपा-| बंधु-दुपहरिया-पुष्पवृक्ष, वधूका भ्राता त, (न.)॥६॥ बांधव, (पुं०)॥९॥ १२ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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