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________________ १७६ विश्वलोचनकोशः- [धान्तवर्गे दपंचमम् । धर्मे रहस्युपनिषद्वेदान्ते पाचवेश्मनि । सहस्रपादो मार्तण्डे कारण्डेपि च यज्वनि ।। ५३ ॥ इति विश्वलोचने दान्तवर्गः ॥ अथ धान्तवर्गः। धैकम् । धो धने च धनेशे च धास्तु धातरि धी मतौ । धद्वितीयम् । अन्धं स्यात्तिमिरे दृष्टिहीने त्वन्धोऽभिधेयवत् ॥ १ ॥ अब्धिर्वारांनिधौ पुंसि पुंस्येवाऽब्धिः सरोवरे । अर्द्ध समांशके क्लीबमर्द्धः खण्डे पुमानपि ॥ २ ॥ पुंस्याधिश्चित्तपीडायां प्रत्याशायां च बन्धके । व्यसने चाप्यधिष्ठाने स्यादिद्धस्त्वातपे पुमान् ॥ ३ ॥ पंचम । धा-ब्रह्मा, (पुं० ) उपनिषद्-धर्म, एकान्त, वेदान्त, धी-बुद्धि ( स्त्री० ) पसवाड़ाका मकान (स्त्री०) धद्वितीय । सहस्रपाद-सूर्य, कारंड (हंसभेद), अन्ध-अंधकार, (न० ) अंधा-मनुयज्ञ, (पुं० ) ॥ ५३ ॥ __ष्य, (त्रि०)॥१॥ इस प्रकार विश्वलोचन कोशकी टीकामें अब्धि-समुद्र, सरोवर, (पुं० ) दान्तवर्ग समाप्त हुवा ॥ अर्ध-बरावर अर्धभाग, (न०) अर्ध (टुकड़ा), (पुं०) ॥ २ ॥ अथ धान्तवर्ग ॥ आधि-चित्तपीडा, प्रत्याशा, गिरवीधैक । रखना, दुःख या शोक, अधिष्ठान ध-धन, (न०) कुबेर, (पुं०) (पुं) धूप, (पुं० ) ॥ ३ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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