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________________ दचतुर्थम् । ] भाषाटीकासमेतः । १७३ मेनादश्छागमार्जारमेघनादानुलासिषु । वातर्विल्कले काष्ठलोहीवेदेकयोः स्त्रियाम् ॥ ३५ ॥ विशदः पाण्डरे व्यक्ते शरत्स्त्री शरदब्दयोः । शारदा जलपिप्पल्यां सप्तपर्णेऽथ शारदः ॥ ३६॥ नवाऽप्रतिमशालीनपीतमुद्देन्दुवर्षयोः । स्त्रियां सम्पद्गुणोत्कर्षे भूतिहारप्रभेदयोः ॥ ३७ ॥ संवित्प्रतिज्ञासङ्केतज्ञानाचारेषु नामनि । स्त्रियां तोषे क्रियाकारे रणे सम्भाषणेऽपि च ॥ ३८ ॥ सम्भेदस्तु विकाशे स्यात्सम्भेदः सिन्धुसङ्गमे । सुनन्दा रोचनानार्योः क्षणदो गणके पुमान् ॥ ३९ ॥ त्रिषूत्सवप्रदे वारि क्षणदं क्षणदा निशि । दचतुर्थम् । अपवादस्तु निद्रायामाज्ञाविश्वासयोरपि ॥ ४० ॥ मेनाद-बकरा, बिलाव, मोर, (पुं०) करनेवाला, रण, संभाषण, (स्त्री) वातर्दि-वृक्षका बकला, काष्ठआदि, ॥ ३८ ॥ (स्त्री०) ॥ ३५ ॥ | सम्भेद-प्रकाश, समुद्र या नदियोंका विशद-सफेद, प्रकट, (पुं० ) मिलाप, (पुं०) शरद-शरदऋतु, वर्ष, (स्त्री०) सुनन्दा-रोचना (गोलोचन ), स्त्री, शारदा-जलपीपल, सप्तपर्णी या सा- (स्त्री० ) तवण, ( स्त्री०) शारद् ॥३६॥ क्षणद-ज्यौतिषी, (पुं० ) ॥ ३९ ॥ नवीन जिसके समान दूसरा न हो. क्षणद-उत्सवदेनेवाला, ( त्रि० ) वह, लज्जावान, पीलामूग, चन्द्रमा, वर्ष (पुं०) । जल, (न०) सम्पद-गुणोंकरके उत्कर्ष (वडप्पन), क्षणदा-रात्रि, (स्त्री० ) संपत्ति, हारभेद, ( स्त्री०)॥३७॥ दचतुर्थे । संविद्-प्रतिज्ञा, संकेत, ज्ञान, आ- अपवाद-निन्दा, आज्ञा, विश्वास, चार, नाम, संतोष, किसी कार्यका। (पुं० ) ॥ ४०॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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