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________________ दतृतीयम् । ] भाषाटीकासमेतः । १७१ कौमुदः कार्तिके ज्योत्स्नापर्वणोरपि कौमुदी। क्रव्यात्क्रव्यादवत्पुंसि मांसभक्षकरक्षसोः ॥ २३ ॥ गोविन्द इन्द्रावरजे गवाध्यक्षे च गीप्पतौ । गोष्पदं गोपदश्वभ्रे गवां च गतिगोचरे ॥ २४ ॥ बलाहकोऽपि जलदो जलदो मुस्तकेऽपि च । जीवदो द्विषि वैद्ये च तरत्कारण्डवे प्लवे ॥ २५॥ तोयदो मुस्तके मेघे तोयदं तु घृतं मतम् । दरद्भये प्रपातेऽद्रौ दायादो ज्ञातिपुत्रयोः ॥ २६ ॥ दारदः पारदे सिन्धौ हिङ्गुले गरलान्तरे । दृषत्पेषणपाषाणपट्टपाषाणयोः स्त्रियाम् ॥ २७॥ धनदो दातरि श्रीदे क्रीडामात्ये तु नर्मदः । नर्मदा नर्मदायिन्यां रेवायामपि नर्मदा ॥ २८॥ कौमुद-कार्तिक-मास, (पुं० ) तोयद-नागरमोथा, मेघ, (पुं०) कौमदी-चाँदका चाँदना, पर्व.(स्त्री.) घृत, (न०) । क्रव्यात्-क्रव्याद-मांसभक्षी, रा दरद्-भय, पर्वतमें गिरनेका स्थान, । पर्वत, (पुं० ) क्षस, (पुं० ) ॥ २३ ॥ दायाद-अपनी सातवीं पीढी भीतगोविन्द-श्रीकृष्ण, गौवोंका स्वामी, रका-मनुष्य, पुत्र (पुं०) ॥२६॥ बृहस्पति (पुं०) दारद-पारा, समुद्र, हींगलू, विषभेद, गोष्पद-गौकी पैड़, गौवोंकी गति (पुं० ) आदि (न०) ॥ २४ ॥ | दृषद-पीसने के लिये पत्थरका पट्टा, जलद-मेघ, नागरमोथा, (पुं० ) ! पत्थर, (स्त्री० ) ॥ २७ ॥ | धनद-दातार, कुबेर, (पुं० ) जीवद-शत्रु, वैद्य, (पुं० ) नर्मद-क्रीडाका मंत्री, (पुं० ) तरद्-करडुवा पक्षी, पुंडेरी-पक्षी नर्मदा-क्रीडा करानेवाली स्त्री, रेवा(पुं० )॥ २५ ॥ ! नदी (स्त्री० ) ॥ २८ ॥ "Aho Shrutgyanam"
SR No.009534
Book TitleVishwalochana Kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNandlal Sharma
PublisherBalkrishna Ramchandra Gahenakr
Publication Year1912
Total Pages436
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Dictionary
File Size9 MB
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