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विश्वलोचनकोश:
नन्दः शिवप्रतीहारे द्यूतभाण्डमिदोर्मुदि । नन्दा मणिकसम्पत्त्योर्निन्दा कुत्साऽपवादयोः ॥ ६ ॥ पदं वाक्ये प्रतिष्ठायां व्यवसायाऽपदेशयोः । पादातच्चियोः शब्दे स्थानत्राणानिवस्तुषु ॥ ७ ॥ पादोsस्त्री चरणे मूले तुरीयांशेऽपि दीधितौ । शैलप्रत्यन्तरौले ना बिदा ज्ञाने मतावपि ॥ ८ ॥ बिन्दुः स्याद्दन्तदशने शुक्रे वेदितृविपुषोः । बेदिरङ्गुलिमुद्रायां बुधे संस्कृतभूतले ॥ ९ ॥ भन्द (द्र) शर्मणि कल्याणे भेदो द्वैधविशेषयोः । विदारणे चोपजापे संपूर्वः सिन्धुसङ्गमे ॥ १० ॥ मदो मृगमदे मधे दानमुद्गर्वरेतसि । महापूर्वी मतङ्गे स्यान्मदी कृषकवस्तुनि ॥ ११ ॥
नन्दि - शिवका पौलिया, जूवा, भांड
( पात्र ) भेद, आनंद, ( ( पुं०न० ) | नन्दा - बडा घड़ा, सम्पत्ति, (स्त्री०) निन्दा - कुत्सा ( निंदा ), अपवाद
( बुरा कहना ) ( स्त्री० ) ॥ ६ ॥ पद - वाक्य प्रतिष्ठा, व्यवसाय ( उ द्यम ), मिस, पाँव, पैड, शब्द, स्थान, रक्षा, वस्त्र, न० ) ||७|| पाद - चरण ( पाँव ), वृक्षकी जड़, चौथा हिस्सा, किरण, पर्वत, पर्वत
के समीप छोटा पर्वत, (पुं० ) बिदा - ज्ञान, बुद्धि, (स्त्री० ) ॥ ८ ॥ बिन्दु - दाँतसे कियाहुवा घाव, वीर्य,
[ दान्तवर्गे
जाननेवाला, (त्रि० ) जल आ. दिकी बूँद (पुं० ) बेदि-अँगूठी, पंडित, संस्कार कीहुई
पृथ्वी, (पुं० स्त्री० ) ॥ ९ ॥ भन्द (द्र ) - सुख, कल्याण, ( न० ) भेद-द्विधाभाव, विशेष, फाड़ना, पु
रुषोंके मेलको फोड़ना, ( पु० ) संभेद - समुद्र या नदियोंका मिलना, ( पुं० ) ॥ १० ॥
मद - कस्तूरी, मदिरा, हस्तीके मदसे
झिरनेका जल, हर्ष, गर्व, वीर्य, (पुं०) महामद - हस्ती, (पुं० ) मदी-खेती करनेवालेकी वस्तु (स्त्री० ) ॥११॥
"Aho Shrutgyanam"